श्री बड़े दादाजी की लीला एवं चमत्कार :-
होशंगाबाद में सन 1892 में नर्मदा तट पर बड़े दादाजी प्रकट हुए आप अपना नाम रामफल बताते थे।बच्चेेे आपको दादाजी कहकर पुकारते थे। श्रीरामफल दादा याने की श्री बड़े दादाजी केेेे रहने का निवास स्थान कोकसर के पास एक छोटी सी पुलिया के समीप निर्जन स्थान में था।
होशंगाबाद में आप जब कभी आते थे तो बहुत से बच्चों की भीड़ लग जाती आसपास में मिठाई की दुकानें भी थी वहां श्री रामफल दादाजी एक मिठाई की दुकान से मिठाई के थाल उठाकर बच्चों को दे देते बच्चे मिठाई के थाल लेकर भाग जाते बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता था। लोग यह सब देखते रहते परंतु किसी की उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं होती थी मिठाईवाला रोते हुए रामफल दादा जी के पैरों में गिर पड़ता और बोलता महाराज में गरीब आदमी हूं इतना नुकसान कैसे सहन कर सकूंगा यह सुनकर रामफल दादाजी जोर जोर से हंसने लगते और बोलते जो बिल हो मुकाम पर पहुंचा देना। लोग सोचने लगे कि यह संत महात्मा इतने पैसे कहां से देंगे इनके पास तो कुछ भी नहीं है परंतु जितना नुकसान हुआ था उसका बिल बनाया गया दूसरे दिन मिठाई वाला बिल लेकर उनके मुकाम पर गया। उस समय श्रीदादाजी होशंगाबाद से दूर कोकसर के रास्ते पर एक पुलिया में रहते थे। मिठाई वाले को देखते ही बोले,क्यों रे मोडा कितना पैसा हुआ है। फिर दादाजी बोले अच्छा ले जा पत्थर के नीचे धरा है, ले उठा ले और भाग जा। पत्थर हटाने पर दुकानदार को उतने ही रुपए रखे मिलते जितने का वह बिल बना कर लाया था।
इस घटना के बाद तो बच्चे दादाजी के पीछे ही लगे रहते थे और खूब मिठाई खाते और दुकानदार श्रीदादाजी के मुकाम पर आते और अपने बिल का पैसा ले जाते अब लोग श्रीरामफल दादाजी को कोई साधारण पुरुष नहीं समझने लगे। लोगों के मन में उनके प्रति श्रद्धा उत्पन्न होने लगी थी।
होशंगाबाद में सड़क की बत्तियों को तोड़ना
एक समय रात में एक निर्धन बालक घर में बत्ती का प्रबंध ना होने के कारण सड़क पर म्युनिसिपल की बत्ती के उजाले में पढ़ रहा था पढ़ते-पढ़ते काफी रात हो चुकी थी। एक पहरा देने वाला पुलिस का सिपाही वहां पर आया और उस बालक को पकड़कर थाने ले गया और उसे खूब पीटा।
दूसरे दिन जब बालकों के प्यारे श्री रामफल दादा जी को मालूम पड़ा तब उन्हें बहुत गुस्सा आया और उनकी आंखें लाल हो गई उन्होंने हाथ में एक बड़ा डंडा लिया और शहर में जितनी भी बत्तियां मिली सब को तोड़ते हुए जा रहे थे। शहर की लगभग सभी सभी बत्तियां आप ने तोड़ डाली। पुलिस वालों को जब उनको यह सब करते देखा तो उन्हें पकड़कर थाने ले गए। वहां उन्हें जेल में डाल दिया गया। जेल में डाल कर जब पुलिस अधिकारी बाहर आए तो सड़क पर रामफल दादाजी को हंसते हुए देख पुलिस अधिकारी भागकर हवालात में गया तो वहां भी अंदर जेल में रामफल दादाजी हंस रहे थे। पुलिस अधिकारी घबरा गया और तुरंत ही उन्हें छोड़ दिया और दादा जी महाराज से हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि आप शहर में कोई उपद्रव ना करें हमारी नौकरी का सवाल है। और उस लड़के को भी छोड़ दिया तब से दादाजी एक डंडा अपने हाथ में रखने लगे वे हंस कर कहते कि डंडे बिना राज कैसे चलेगा। अब श्री रामफल दादाजी को होशंगाबाद शहर के तथा आसपास के गांव वाले अवतारी पुरुष समझने लगे और उन्हें डंडे वाले दादा जी के नाम से जानने लगे।
श्रीरामफल दादाजी का रेलवे इंजन रोककर पुनः चालू करना :-
सन 1893 में होशंगाबाद से इटारसी जाने वाली रेलगाड़ी सिटी देकर चलना ही शुरू की थी कि इतने में श्रीरामफल दादाजी रेल में आकर बैठ गए और एकदम दोनों मुट्ठी बांध ली और मुंह से ठप ठप ठप शब्द करने लगे और हाथों को जोर-जोर से अपनी ओर खींचने लगे मानो उनके सामने कोई इंजन खड़ा हो और रामफल दादाजी उसका ब्रेक लगा रहे हो। गाड़ी चलते चलते अचानक रुक गई। और थोड़ी ही देर में ड्राइवर कंडक्टर गार्ड और स्टेशन मास्टर सब परेशान हो गए। आखिर यह गाड़ी क्यों नहीं चल रही है। उन्ही यात्रियों मे कुछ लोग श्रीरामफल दादाजी को पहचानते थे। उन्होंने इंजिन ड्राइवर को खबर की। ड्राइवर ने आकर श्रीदादाजी से प्रार्थना एवं क्षमा याचना की। तब श्रीदादाजी जोर जोर से हंसने लगे और मुंह से मक मक मक शब्द की ध्वनि करने लगे हाथों को इस प्रकार ढीला किया मानो कोई बंधा हुआ ब्रेक खुल गया हो और फिर अचानक इंजिन चालु हो गया।चारो तरफ श्रीदादाजी की जय जयकार होने लगी।
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।। जय श्रीदादाजी की ।।
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