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श्री दादाजी के अनमोल वचन

                श्री दादाजी के अनमोल वचन

                      ॥ जय श्री दादाजी।।


             श्री दादाजी की अमृत वाणी


 (1) वाणी—नाहम् वसामि बैकुण्ठे, योगिनां हृदयेन च

                 मदभक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारदः ।

भावार्थ —  श्री हरिहर भगवान जी कहते है ना मैं बैकुण्ठ में रहता हूँ न योगियों के हृदय में, लेकिन हे नारद मेरे भक्त जहाँ प्रेम से मेरे नाम का संकीर्तन, या भजन करते है नाम स्मरण करते है मैं वही रहता हूँ इसलिये दादा दरबार में भगवानजी ने सुबह और शाम दोनों समय दादा नाम स्मरण का (भजो दादाजी का नाम, भजो हरिहरजी का नाम) दोनों बड़ी आरतियों के साथ जोड़ा है भक्त लोग दादा नाम में सम्मिलित होकर उसका लाभ प्राप्त कर सके, अपने-अपने घर पर भी यदि नाम स्मरण करते है तो अतिश्रेष्ठ है, और मैं वहाँ भी रहता हूँ।

(2) वाणी — 

श्रीहरिहर भगवानजी ने कहा—

श्री राम अवतार हुआ तो रामजी ने राजाओं की मर्यादा पाली

श्री कृष्ण अवतार हुआ तो कृष्णजी ने संसार की मर्यादा पाली।

श्री दत्तात्रेय हुए तो दत्तात्रेयजी ने जोगियों योगियों की मर्यादा पाली।

श्री दादाजी अवतरित हुए तो धूनी की मर्यादा पाली। 

(3) वाणी— 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा नाव में चार लंगर होते है, जब नाव तूफान में आ जाती है। तब चारो लंगर डाल दिये जाते है, ऐसा ही भगदानजी के मार्ग पर चलने का रास्ता है अगर रास्ते में मन डावाडोल हो गया तो फिर काम, क्रोध, मद्, लोभ, चारो पर मन को हटा लो मन में भ्रम नहीं रहेगा। फिर भगवानजी के मार्ग पर चलने की लाईन साफ हो जावेगी। 

(4) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसने श्री दादाजी महाराज को जान लिया उनके मूल स्वरूप को समझ लिया फिर उसके मन के सब संशय समाप्त हो जाते है और वह श्री दादाजी की। भक्ति में ही लगा रहता है।

(5) वाणी 

श्री बड़े दादाजी ने कहा मैं सात खंड ऊपर से आया। हूँ। शंकर हूँ। और साढ़े तीन हजार साल तपस्या की जब ये मोड़ा आया (श्री छोटे दादाजी हरिहर भोले भगवान)

भावार्थ - साधना का स्तर कुल सात खण्डो का होता है, जो सोलह कलाओं से युक्त है, श्री बड़े दादाजी (शंकर जी) ने साढ़े तीन हजार वर्ष तपस्या करके भगवान विष्णु को श्री हरिहर भोले भगवान के रूप में अवतरित किया है।

(6) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा कि दादाजी या देवीजी स्वप्न में कुछ कहे तो उसे सच मानना चाहिये। 

(7) वाणी 

हरिहर भोले भगवानजी कहते थे अपने दुःख की बात सिर्फ मुझे बतलाना अपने दिल की बात दिल में रखना जाहिर करने पर बात पूरी होने में काँटे आ जाते है, दुःख में हमेशा मेरा नाम भजनाऔर संशय न करना ।

(8) वाणी 

श्री दादाजी ने कहा पढ़-पढ़ कर पंडित मर गया। 

सुख पाया सत् संगा ।। सींच-सींच कर माली मर गया। 

सुख पाया भौरंगा ।। खोद- खोद कर चूहा मर गया। 

सुख पाया भुजंगा ।।जोड़- जोड़ कर कंजूस मर गया। 

सुख पाया लड़कंगा (लड़का) ।। 

भावार्थ- पंडितजी वेद, पुराण, ग्रन्थों का बार-बार अध्यन करके प्रवचन करते है। कोई श्रोता उसको जीवन में धारण कर लेता है वह तर जाता है किन्तु कई बार पंडित जी लटक जाते है। माली पौधों को सींच कर छोटे से बड़ा करता है किन्तु पौधों में जो कलिया निकलती है भौरा मंडरा-मंडरा कर रसास्वादन करके आनन्द लेता है। जमीन को खोद कर चूहा अपना घर बनाता है सांप को बना बनाया घर मिल जाता है और खाने को चूहे भी मिल जाते है। कंजूस व्यक्ति जीवन भर परिश्रम से धन कमाता है जोड़-जोड़ कर आगे बढ़ाता है उसकी संतान उस धन सम्पदा से सुख भोगता है। सब सुख का मिलना न मिलना सब भगवानजी की कृपा से होता है अतः किसी भी सांसारिक चीज में लिप्त नहीं होना चाहिये, और भगवानजी का स्मरण करते रहना चाहिए।

(9) वाणी 

सब कुछ भगवान जी का है, यह ख्याल रखें, (जो कुछ मेरे पास दिखाई देता है भगवानजी का दिया है, उन्होनें मुझे परिवार की जवाबदारी सौंपी है उसकी सब व्यवस्था चलाने के लिए साधन के रूप में दिया है।)

भावार्थ- भगवानजी पुरी सृष्टि के जीवों का भरण पोषण करते है, उन्होनें एक परिवार के व्यवस्था की जिम्मेदारी परिवार के मुखिया को सौंप दी है, एवं एक व्यवसाय या नौकरी साधन के रूप में दी है ताकि उसमें लगन और मेहनत से काम करके धनोपार्जन करें और परिवार के लोगों का भरण पोषण बिमारी लाचारी शिक्षा समय-समय पर व्यवहार करके मन में ये भाव रखे की ये पत्नि एवं बच्चे नौकर और व्यवसाय यह सब मेरे नहीं है भगवानजी ने इन सब की जवाबदारी मुझे सौपी है और यह परिवार चलाना न सोचकर भगवानजी का सौंपा हुआ कार्य कर रहा हूँ ऐसा भाव रखे तो परिवार चलाना भी भगवत पूजा के समान ही है।  

(10) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा हम महादेवजी केलड़के है सबको आनन्द, संतोष देते है, पालन पोषण करते है, खिलाते पिलाते है, सदा रक्षा करते है, ये विष्णु की विद्या है। 

( 11 ) वाणी 

श्री भगवानजी ने कहा जो अनन्य भक्ति से हृदय में मेरा ही रात दिन चिंतन करते है मैं उन्ही के हृदय में वास करता हूँ। 

(12) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा यदि हम देखकर भी साक्षात श्री दादाजी महाराज को भी नही पहचान पाते तो यह हमारी जन्म जन्मान्तर की अज्ञानता है।

(13) वाणी 

जो भक्त श्री दादाजी की शरण में आकर भजन और - सेवा में निरन्तर लगा रहता है दादाजी उसके जन्म जन्मातरों के पापो को जलाकर भस्म कर देते है। 

(14) वाणी

श्री दादाजी हाथी बनकर आये और सुई की नोक मे से होकर चले गये किसी ने उनको जाना तक नही ।

भावार्थ 

श्री दादाजी इतने विशाल बनकर आये कि सृष्टि के समस्त प्राणियों में, पूरी प्रकृति में, जड़ में, चेतन में सब में समा गये। और सुई की नोक का मतलब प्रत्येक आत्मा में चेतना देकर चले गये और बहुत कम लोगो ने उन्हें जान पाया।

(15) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा प्रेम बिना भक्ति नही होगी बिना भक्ति के जींव का कल्याण नही होगा अतः नाम जप का सतत् अभ्यास करते रहो प्रेम अपने आप श्री दादाजी से हो जायेगा। 


(16) वाणी 

श्री हरिहर भगवाजी ने कहा बड़े दादाजी तो कल्पतरू है, अन्तिम समय में जैसी कल्पना करोगे वैसा जीवन मिल जायेगा। 


(17) वाणी 

श्री भगवानजी का गुण और महिमा न जानते हुए नाम लेवे तो भी अच्छा है और यदि भगवानजी के गुण और महिमा को जान लेवे और बाद में नाम लेवे, तो फिर सोने में सुहागा (सुगंध) आ जावे फिर क्या कहना अतः वह अति श्रेष्ठ है श्री भगवानजी के अनंत गुण है और अपार महिमा है उसका कोई अन्त नही।


(18) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो कुछ शक्तियाँ है वह ईश्वर श्री दादाजी महाराज की शक्ति ही है।


(19) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा जो माता पिता से और पढ़ाने वाले से जो डरता है वो ही पढ़ सकता है और सुधर सकता है। 


( 20 ) वाणी - 

ज्योति में ज्योति मिले तो ज्योतिषी क्या करें। 


भावार्थ— वर्तमान में ज्योतिष के नाम पर फैल रहे अज्ञानता पूर्ण व्यवहार के लिये जब तुमको श्री दादाजी के नाम की ज्योति मिल गई परमात्मा का प्रकाश मिल गया तो अपनी आत्म ज्योति को श्री दादाजी के नाम की ज्योत में मिला लो फिर कोई अज्ञानता तुम्हारे पास नहीं रहेगी सभी संशय दूर हो जायेगे।


(21) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा पीलिया वाले को पीला ही पीला नजर आता है अर्थात जिसमें स्वयं दोष होता है, दूसरो में भी दोष देखता है।


(22) वाणी- 

जो जितने दूर उतने पास, और जो जितने पास उतने दूर। भावार्थ जो भक्त श्रध्दा और निष्कपट भाव से कही से भी कितने दूर से श्री दादाजी महाराज को मन के द्वारा प्रणाम करता है, वह श्री दादाजी महाराज के पास पहुँच जाता है, और यदि कोई भक्त श्री दादाजी के पास खण्डवा में हो और उसका मन उसके कामकाज घर गृहस्थी के बारे में सोचता रहे तो वह श्री दादाजी से उतने ही दूर रहता है।


23 ) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मन चंचल है। भजन नही होता मन को बुरे काम में मत जाने दो इस पर भी जाता है तो जाने दो मगर शरीर को मत जाने दो तुम अपना काम करते रहो मन अपने आप वापिस आ जावेगा।


( 24 ) वाणी 

एक भक्त ने भगवानजी से बोला कि हम ओंकारेश्वर जाते है। श्री भगवानजी बोले जाते हो तो जाव तुम्हारी खुशी । यहाँ पर सब बैठे है। चारों तीर्थो के नाम अलग अलग है. पर है दो देवता (1) श्री शंकरजी (श्री दादाजी) (2) श्री भगवानजी । और दोनों ने कलियुग में अवतार लिया है। 

भावार्थ- 

श्री दादाजी के दर्शन के बाद किसी भी देव स्थान के दर्शन की आवश्यकता नही है। सब श्री दादाजी के यहाँ विराजमान है। 


(25) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा एक ही का सहारा लेवे सत्रह का नही बिना गुरू के रास्ता भी नही मिलता सो. तो गुरू इस जमीन आसमान के बीच में श्री दादाजी एक ही है। 


(26) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मेंढ़क गंगाजी में (पानी में) पड़ी रहती है, तो बैकुण्ठ थोड़ी चली जाती है। नहाने से क्या होता है, मन को नहलाना चाहिये। मन साफ होना चाहिये । 

भावार्थ- 

शरीर का मैल धोने से क्या होगा? सफाई तो मन की होना चाहिये अतः निष्काम भाव से श्री दादाजी का नाम स्मरण करते रहना चाहिये।


(27) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा क्रोध में जलन होती है सो जलता रहता है। क्रोध शांत नही होता जब तक सद्गुरू श्री दादाजी के चरणों में क्रोध को कारण सहित समर्पित न कर दे ऐसा करने से क्रोध से दूरी बढ़ती है, फिर शान्ति मिलती है, प्रेरणा द्वारा मूल कारण समझ में आता है भविष्य के लिए शिक्षा मिलती है, मन शान्त हो जाता है।


(28) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा तुम लोग कभी न कभी,कहीं न कहीं मरोगे ही मृत्यु निश्चित है। मेरे नाम का स्मरण करते हुए मरो सदगति मिल जायेगी।


(29) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जैसे रेल की पटरी अन्तिम छोर तक डाल दी जावे तो गाड़ी अपने मुकाम तक पहुँच जाती है। उसी प्रकार यदि मनुष्य अपने जीवन काल में अपने कल्याण हेतु मन में सतत् नाम जप की पटरी डाल देवें तो अपने मुक्काम तक पहुँच जाता है। 


(30) वाणी 

श्री भगवानजी (श्री छोटे दादाजी) ने खुद को श्री दादाजी का द्वारपाल बताया। 

भावार्थ- 

जब कोई भक्त श्री बड़े दादाजी के पास जाता है, तो श्री दादाजी शंकर स्वरूपा होने के कारण अपने ध्यान में लीन रहते है, और भगवानजी के तरफ इशारा कर देते है, (विष्णु स्वरूपा होने के कारण) 


(31) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा— 

तुम हमारे धाम पर, 

हम तुम्हारे काम पर, 

तुम अपने काम पर, 

तो हम हमारे धाम पर ।


(32) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसे स्वप्न में भी श्री दादाजी के दर्शन हो जावे तो उसको मनुष्य जन्म देने की ग्यारंटी मेरी है। जो जीवन में भी कभी दादाजी को भगवानजी को, परमात्मा को याद न करता होवे और हमेशा काम वासना में ही लगा रहता हो तो उसे महापापी समझना चाहिये।


(33) वाणी 

श्री दादाजी के अनमोल वचन श्री हरिहर भगवान जी ने कहा प्रत्येक कार्य दादाजी का नाम लेकर शुरू करना चाहिये। कही जाओ तो श्री दादाजी से अर्जी लगाकर जाना चाहिये।


(34) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा श्री गुरूदेव की आज्ञा का पालन बिना सोचे विचारे करना चाहिये तथा उनके वचनों में अटल विश्वास रखना चाहिये गुरूबल से बढ़कर बल नही कृपा करो गुरूदेव की नाई।


(35) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा ऐसा भजन करो जो हर वक्त उसी का नशा रहे। भावार्थ अपने मन को श्री दादाजी में रमा दो या उनका सतत् नाम जप चलता रहे। 


( 36 ) वाणी

श्री भगवानजी की भक्ति में सतत् लीन होना ही जन्म मरण के बन्धन से छूटना है और वही मुक्ति है।


(37) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा "भक्ति" क्या है?भजन में मन लग जावे वही भक्ति है। "मुक्ति" क्या है? जो संसार से बैराग्य हो गया वही मुक्ति है।


(38) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मंत्र वही जो सतत् चलता रहे और जो मन को तर कर दे आनन्द की अनुभुति हो, सद्गुरू हर जगह अन्दर बाहर दिख पड़े। 


(39) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बगैर भजन, ऐको काम न आवे ना भाई, ना बहन, ना लुगाई ना लड़का।


(40) वाणी

श्री भगवानजी में बुध्दि लगाओं श्री भगवानजी में मन लगाव, श्री भगवानजी का स्मरण करो, श्री भगवानजी के शरण में जाकर सब कुछ समर्पित कर दो, जीवन सफल हो जायेगा। 


(41) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा प्रातः 5 बजे की मंगला आरती में जरूर हाजिर रहना चाहिये।


( 42 ) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा कोई भी काम अच्छा बन जावे तो उसमें श्री दादाजी महाराज की कृपा समझना चाहिये। 


(43) वाणी 

श्री भोले भगवान जी बोले एक दिन एक आदमी पहले दिन दर्शन करके गया, दूसरे दिन मर गया। और फिर उसकी अर्थी दरबार तरफ से निकली। सो श्री दादाजी को देखकर यमदूत बोले श्री दादाजी इसका कैसा करे आपका दर्शन इसे कल दिन हुआ था | श्री दादाजी बोले दर्शन हुआ था नही ले जा सकते। ( उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई ).


(44) वाणी 

श्री भगवानजी ने कहा गुरू सामर्थ्य मिल जावें, तो चेला कैसा भी उल्टा सीधा गिरे गुरू पार लगा देते है।


(45) वाणी  

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जीवन की पूर्णता के लिये भक्ति और ज्ञान आवश्यक है, बिना वैराग्य के भक्ति और ज्ञान टिक नही पाता यदि निष्काम भाव से भक्ति की जाये तो भक्ति के प्रकाश द्वारा ज्ञान बढ़ने लगता है, तथा निष्काम भाव के कारण कामनाएँ घटने लगती है, और वैराग्य उत्पन्न होने लगता है, और जीवन सार्थक किया जा सकता है।


(46) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा विपरीत परिस्थितियों  में भी हार ना माने। इनसे चिपके भी नहीं और घबराये नही। तटस्थ हो जाये। भगवानजी के साथ एकाकार होकर परिस्थितियों को गुजरने दे। भगवानजी मेरे साथ है और मैं भगवानजी का हूँ यह विश्वास पक्का करे। भगवानजी जल्दी प्रगट होगे और सम्हाल लेगे। 


( 47 ) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा सत् पुरुष वाक्यं अचलं दृढ़े। भावार्थ — सत्पुरूष का वचन अवश्य पूर्ण होता है व अटल है।


(48) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहां लूटो खाव गुरू महाराज के लुटेरे बने रहो। मैं उनसे कहता हूँ जो दूसरो को लूटते है। 


भावार्थ— गुरू महाराज कहते है मैं लुटाने के लिए तैयार बैठा हूँ दूसरे के बजाये मेरे पास आकर जो चाहे लूट लो । 


(49) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मैं तुम विद्या पढ़ो तो मैं खूब विद्या पढ़ाऊ । 


(50) वाणी 

खूब विद्या पढ़ा हूँ। श्री हरिहर भगवानजी ने कहा आनन्द मय स्वरूप ही मेरा स्वरूप है अतः जहाँ आनन्द है वहाँ मैं ही हूँ।


(51) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बिल्ली का एक मुँह चूहा खाने का और दूसरा मुँह अपने बच्चे को मुँह में रखकर ले जाने का होता है। ऐसा ही परमेश्वर का मुख भक्त और अभक्त के लिये होता है।

भावार्थ - श्री हरिहर भोले भगवानजी ने बताया कि बिल्ली का मुँह चूहे खाने का होता है, तथा उसी मुँह से अपने बच्चे के पैदा होने पर अपने मुँह में दबाकर बच्चे को सुरक्षित रखते हुए घरो घर घुमती है, बिल्ली का बच्चा पूर्ण रूप से माँ की शरण में रहता है। माँ अपने बच्चे की पूरी चिंता रखती है। इसी तरह श्री भगवानजी का मुँह (व्यवहार) अपने भक्त और अभक्त के लिए भी ऐसा ही होता है, और भगवानजी अपने भक्तों की पूरी चिंता रखते है।

52 ) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा श्री शंकरजी की पूजा तीन जगह होती है।

आकाश लोक में शिर की। 

मृत्यु लोक में लिंग की । 

पाताल लोक में चरणों की ।।


(53) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मेरे आदेश का पालन करो। जो कुछ दिया है उसमें संतोष करो । 


(54) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा तुम्हारे पास कोई योग्यता कोई प्रमाणपत्र, धन दौलत, कुछ भी न हो तो भी भक्ति कर सकते हो।


( 55 ) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा घर वालो से प्रेम नही रखोगें तो श्री भगवानजी से क्या प्रेम करोगें । 


(56) वाणी - 

जब भवानीजी सामने खड़ी है, और श्री दादाजी भी सामने खड़े है तब गुरू श्री दादाजी को सिर नमाये ।


(57) वाणी 

श्री रामजी ने रामेश्वर में रेता की पिंड की स्थापना की, क्योकि रेता में रूखापन होता है (मेल एका नही होता) इसी प्रकार श्री भगवान जी भी किसी बात में लिप्त नहीं होते।


(58) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा निष्काम भाव से कर्म करना श्रेष्ठ है। 

भावार्थ 

कर्म करे तो किसी इच्छा पूर्ति के लिये या कामना के लिये न करे बिना कामना या फल की इच्छा से रहित होकर कर्म करना चाहिये। इस प्रकार से निष्काम भाव से कर्म करना श्रेष्ठ है। 


( 59 ) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अभ्यागत की आत्मा को भोजन द्वारा संतोष कराना चाहिये।


(60) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहां मेरे नाम पर रोटी सब जगह मिलती है किन्तु मैं यहाँ खण्डवा में मिलता हूँ दादाजी सब जगह व्यापक है किन्तु यहाँ तो साक्षात विराजमान है अतः साल में एक दो बार आ जाया करो।


(61) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा वासना को छोड़ देना चाहिये वासना से मति बिगड़ती है अन्त मति सो गति अर्थात् मरने के समय जैसी मति होती है वैसी गति होती है, जड़ भरत को मृग होना पड़ा था।


(62) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा सद्गुरू के पास किसी की वकीली नही चलती, इसलिये वे किसी के कहने से कुछ नही करते क्योकि वो जानते है कि कौन कैसा है। 

भावार्थ—श्री दादाजी की समाधि पर स्वयं प्रार्थना करो किसी अन्य का आश्रय न लो ।


(63) वाणी 

आगे गुरू श्री दादाजी पीछे चेला श्री हरिहर भगवानजी, जब जब श्री दादाजी का अवतार होता है श्री हरिहर भगवान साथ में आते है।


(64) वाणी

हानि लाभ, जीवन मरन, यश, अपयश, सब श्री दादाजी के हाथ में है।


( 65 ) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अहंकार है तब तक जब तक (ओंकार) ॐ कार नही, ओंकार से अहंकार समाप्त हो जाता है। 


(66) वाणी-

श्री दादाजी कहते थे, बड़ी पुण्याई से मनुष्य शरीर मिला है। जीव मात्र को चाहिये कि शरण में आकर आवागमन से मुक्त हो जाय। 


(67) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा जो जैसा होता है वो वैसी ही शिक्षा देता है।


(68) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा याद है आबाद है,भूला तो बरबाद है। 


(69) वाणी

श्री बड़े दादाजी ने कहा चारो धाम घूमोगे तो भी हरिहर भगवान जी जैसा नहीं मिलेगा।


(70) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अपने मुख से, श्राप,

खोटे वचन नहीं कहना चाहिये उससे पुण्यक्षीण होता है।


(71) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो जन्म मरण का साथी है उसे नहीं भूलना चाहिये। (श्री दादाजी को)


(72) वाणी 

श्री दादा नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार ।

मन में चिंता न करो, हरिहरजी खेवन पार ।।


(73) वाणी

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा है अमृत रसपान करना  होवे तो प्रभु श्री दादाजी के भजन का रसपान करें। 


(74) वाणी 

श्री दादाजी का पूजन करते रहने से दादाजी का आना जाना बना रहता है।


(75) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा- जो माया है उसमें त्रिदोष है। जब त्रिदोष होता है तो मनुष्य को होश नहीं रहता, कुछ सुध नही रहती। माया के साथ-साथ जीवन यापन करते हुए श्री दादाजी के नाम जप स्मरण का अभ्यास करते रहना चाहिये। ताकि मरते समय तकलीफ ना होवे।


(76) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा माला जपने से चित्त को आसरा मिल जाता है माला से चित्त को एकाग्र किया जाता है। 


(77) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा आरती में घंटा, शंख, झांझ, नगाड़ा इसलिये बजाये जाते हैं कि प्रेम के साथ आरती की

जावे और चित्त इधर उधर न जावें। घंटा, शंख बजाने से भूत प्रेत भाग जाते है उनके आवाज से डरते है। 


(78) वाणी 

श्री दादाजी की आज्ञा ही समस्याओं की दवाई है,और श्री दादाजी की सेवा भी है। 


(79) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा आस गुरु महाराज की करना चाहिये करम की नहीं। करम की आशा करना था तो यहाँ क्यों आये ।


(80) वाणी

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो कुछ खाना हो पहले उसका दादाजी को नेवैध लगाकर प्रसाद समझकर खाना चाहिये ।


(81) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा प्रभु कभी न कभी तो कृपा करेगें, ऐसा हमेशा ख्याल रखना चाहिये । 


(82) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी अज्ञान को हरके प्रकाश भर देते हैं।


(83) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बड़े दादाजी की शरण में रहना चाहिये, दादाजी भक्तों की रक्षा करते है।


(84) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा अन्नदान से बढ़कर कोई दान नही। जहाँ अन्नक्षेत्र रहता है वहाँ मैं रहता हूँ। 


(85) वाणी 

भगवानजी की वाणी ही दादाजी का डण्डा है।


(86) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा ज्ञान थोड़े समय के लिये तीन जगह होता है।

(1) वेद पढ़े तब 

(2) मुर्दा जले तब

(3) मैथुन करने के बाद ज्ञान होता है 


(87) वाणी

श्री भगवानजी ने कहा जो मेरे को भजता है। मैं उसको भजता हूँ एक घड़ी नही भूलता।


(88) वाणी 

श्री दादाजी ने कहा जो मेरी फिकर करता है मैं उसके जिगर का घाव मिटा देता हूँ।


(89) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा महात्मा नहीं बनना, सिध्द नहीं बनना, सेवक बने रहो सिध्द तो केवल परमात्मा श्री दादाजी हैं। सिद्धों की सिद्धाई दरबार में नही चलती।


(90) वाणी 

देवी (धूनी) माता है, मैं इसे तृप्त कर जिमा देता हूँ, उसकी कमाई उसी में लगाता हूँ। 


(91) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बुध्दि काम करती है, जब निर्मल और एक रस रहे ।


(92) वाणी- 

गुरु जो कहे सो करना जो करे सो नही करना चाहिये। भावार्थ- गुरु की कभी भी नकल करने का प्रयत्न नही करना चाहिये। 


(93) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा उदास नही होना चाहिये, उदासीन रहना चाहिये ।

भावार्थ—उदासीन रहने का अर्थ है सांसारिकता के कार्यों से चिपकना नही चाहिये। अतः उनसे निर्लिप्त रहना चाहिये । 


(94) वाणी- 

श्रीहरिहर भगवानजी ने कहा अपना कर्म नहीं छोड़ना चाहिये 

भावार्थ–जो ब्राम्हण,क्षत्रिय,वैश्य, शुद्र के कर्म बताये गये है वह अपने वर्ण के अनुसार जो कर्म है उन्हें नहीं छोड़ना चाहिये । 


(95) वाणी

मनुष्य श्री हरिहर भगवानजी का चेला हुआ तो सद्गुरू श्री दादाजी से मिला देते है।


(96) वाणी 

श्री दादाजी के श्री मुख के "महावाक्य" है, ज्ञानी हमेशा मस्त रहता है। 


(97) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा जीते में गैल (रास्ता) -बना ले नही तो मरे में क्या करेगा। 

भावार्थ—जीते जी जान लेना चाहिये की हमे एक दिन अवश्य मरना पड़ेगा, अतः प्रभु श्री दादाजी महाराज का नाम स्मरण अभी कर ले नही तो मरे पर क्या करेगा 


(98) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा रोज भजन गाया करो,दिन रात गाया करो। भजन और नाम जप करने में कुछ लेना देना नहीं पड़ता, और भगवानजी का वहाँ आना जाना बना रहता है। 


(99) वाणी 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा हे गुरू कीजे जान कर, पानी पीयों छान कर।


(100) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा पूजा थोड़ी देर करो या ज्यादा देर करो,प्रेम और शान्ति से करो। आरती और पूजा मे श्री दादाजी की जय बोलना चाहिये। श्री और जी और जय बोलना चाहिये। जैसे श्री दादाजी की जय ।


(101) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा श्री दादाजी को फूल ऐसा चढ़ाया जावे जिससे फूलों का भार श्रीदादाजी पर ना पड़े। अच्छी तरह सफाई से प्रेम से चढ़ावे । बेलपत्ती भी एक एक धोकर, डठुवा तोड़कर सीधा हिस्सा नीचे की तरफ सीधी तरफ से एक एक चढ़ाना चाहिये। खंडित, फटी, छेद वाली बेल पत्ती ना चढ़ाई जावे और ना मुट्ठा भर भर के चढ़ाई जावें।


(102) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मौत सब की एक जैसी नही होती जिसका जैसा जीवन बीतता है अन्तिम समय उसकी मति वैसी ही रहती है और वैसी ही मौत होती है।


(103) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा हमेशा एक देवता को ही अपना इष्ट देव मानना चाहिये जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री पति को ही मानती हैं।

(104) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अच्छे अच्छे कमंडल वाले तपस्वी मारे मारे फिर रहे है, बिना दया निधि (श्री दादाजी) की दया के बिना शरीर तपाने से क्या फायदा? और अगर दया निधी श्री दादाजी की दया हो गई तो सद्ग्रहस्थ भी तपस्वी बन सकता है। 

(105) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा विश्वास करके मन को एकाग्र करके एक का ही सहारा रखे। एक मंत्र जपे। और मन में शांति रखे। श्री दादाजी अवश्य दर्शन देगें।

(106) वाणी- 

श्री दादाजी ने कहा कि हमारे यहाँ आया करो तो शुध्द मन से आया करो यह एक के लिये नही सबके लिये नियम है। (107) वाणी- श्री हरिहर भगवानजी ने कहा भण्डार गृह में चाहे राजा भी क्यो न हो भण्डारे के दिन हर एक को अवश्य जाना चाहिये व घर का काम समझकर काम करना चाहिये या देख रेख करना चाहिये नही तो वहां जाकर बातचीत तो भी करना चाहिये ।


(108) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा दादाजी देना सीखे है लेना नहीं सीखे।


(109) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो जैसा होता है उसे वैसा ही दिखता है, धर्मराज को बुरे से बुरा आदमी नही मिला, दुर्योधन को अच्छे से अच्छा आदमी नही मिला, ईमानदार को ईमानदार, बेईमान को बेईमान दिखता है।


(110) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अभिषेक करने से अभिषेक की ठण्डी तंरगे श्री दादाजी के पास पहुँचती है, लेकिन अभिषेक का चरणामृत नही लेना चाहिए। चरणामृत स्नान का लेना चाहिये। 

(111) वाणी- श्री हरिहर भगवान जी ने कहा जिसे दादाजी बनाये उसे कोई नही मिटा सकता है।


(112) वाणी 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा हे मैं भक्तो के हृदय मे रहते हुए भी निर्लिप्त रहता हूँ। 


(113) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा भवसागर दादाजी की कृपा से पार हो सकते हो । 

(114) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिस किसी तीर्थ स्थान को जाना तो पहले वहां के प्रधान देवता से मिलना चाहिये तथा अपने किसी एक अवगुण को वहाँ पर छोड़ आना चाहिये, और दान पुण्य भी करना चाहिये।"


(115) वाणी - 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा मनुष्य ने सदा "सत्सुकृत्" की रोटी खाना चाहिये। 


(116) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसका गुरू मेहरबान उसका चेला पहलवान । 


(117) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा यहाँ पर आते हो तो टाईम गिनते हो ।और कही जाते हो, तो टाईम नही गिनते। बड़ी पुण्याई होती है जब यहाँ आने का समय मिलता है घड़ी-घड़ी जब तक आओ तब तक तो लाभ लूट लो आने पर मन को श्री दादाजी में लगाना चाहिये। ये नही कि वहाँ की फिकर लगी रहे। क्या करे रोजगार, घर का काम बहोत है फुरसत नही मिलती। हमें भी कहना पड़े अच्छा-अच्छा जाओ, जाओ।


(118) वाणी- 

श्री भगवानजी से भक्त ने पूछा क्या आप डन्डे वाले है भगवानजी बोले हम तो डन्डे वाले है। चाहे जिसको उठाकर मार देवें। ये डन्डा किसी को ऐसे फालतू मारा नही जाता है। इस डन्डे में बड़ी करामात है।


(119) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अंग अपना अपना काम करे। पाँव चले, आँख देखें, कान सुने, हाथ काम करे, परन्तु मुख श्री दादाजी का भजन करते रहें।


(120) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा आहुति धूनी के बीच में ही देना चाहिये क्योकि वहाँ मुख है, यदि मंत्र भी जाने, तो भी बीच में ही आहुति देना चाहिये। आहुति वहाँ दे जहाँ अग्नि प्रज्वलित हो । एवं ऐसी जगह भी नहीं देना चाहिये जहाँ से बहकर आहुति भस्मी में जावे। श्री फल धूनी के शिखर में से गिर जाये तो नीचे जमा कर रख दे क्योकि जल पहाड़ पर से गिर जाये तो पहाड़ पर फिर नही चढ़ता।

(121) वाणी- 

श्री भगवानजी ने कहा धर्म से धन की वृध्दि होती है। कर्म करने से बुध्दि का प्रकाश तेज होता है। तप करने से आयु की वृध्दि होती है। सतसंग करने से ज्ञान विज्ञान की प्राप्ति होती है संतोष और शांति रखने से सफलता की प्राप्ति होती है निष्काम कर्म करने के बराबर धर्म भी नहीं है।


(122) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा कोई कहे कि मैं सब करता हूँ। मैं का अभिमान ना करे। शरीर का भी ना करे। अपने अहं भाव को नष्ट करना चाहिये शरीर नाशवान है। 

(123) वाणी- 

श्री भगवानजी जो कुछ भी करते है वह अच्छा ही करते है,

(124) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा दरबार मे डर छोड़कर हमेशा सामने रहना चाहिये। सूर्य के सन्मुख रहने से प्रकाश मिलते रहता है।

भावार्थ- मेरे जितने करीब रहोगे मैं तुम्हारी बुध्दि में उतना अधिक प्रकाश दे दूँगा ।


(125) वाणी - श्री हरिहर भगवानजी कहा नीच को मुँह लगाने से सिर पर चढ़ता है ।

भावार्थ अगर कोई बुराई भी करे, निंदा भी करे तो ध्यान मत दो। 

(126) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा गुरू मंत्र देने वाले गुरू शिष्य को तार नही सकते साक्षात् सद्गुरू श्री दादाजी ही तार सकते है। 

(127) वाणी- 

श्री बड़े दादाजी महाराज का महावाक्य है ठगो न दुनिया मक्कर से गुजर करो एक टिक्कड़ से।


(128) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा गुरू दरबार में जो नम कर रहेगा उसकी चोगुनी उन्नति होगी। 

(129) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा पाप पर ध्यान देने से पापी हो जाता है।

(130) वाणी- 

गुरू श्री दादाजी का स्थान सब देवता के उपर है। 

(131) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मनुष्य को नशा नही करना चाहिये क्योकि नशे से सेवा नही होती तथा बेअदबी हो सकती है, जिससे मनुष्य दण्ड का भागी हो जाता है।


(132) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बाल हर्रे व सेंधा नमक आवश्यकता (पेट साफ करने की) होने पर पानी के साथ लेना चाहिये। 

(133) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो लड़का इशारे पर काम करता है वह मुझे अच्छा लगता है।

(134) वाणी- 

श्री भगवानजी ने कहा जो डर के सीधेपन से रहता है, उस पर मैं दया करता हूँ। किन्तु छल कपट चोरी करने वाले पर दया नहीं करता।


(135) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा भजन मन के अन्दर ही बिना दिखावा किये करना चाहिये । 

(136) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा सब संतन में सिरमौर है धूनीवाले। रक्षा करो हमारी दादाजी धूनीवाले।


(137) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा एक दो सन्तान हो जाने के बाद भोग करना छोड़ देना चाहिये । 

(138) वाणी - 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा आया यहाँ सो सुधर गया, भागा यहाँ से सो बिगड़ गया। 

(139) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा मन मिले तो मेला कीजे, चित्त मिले तो चेला । साधु मिले तो संगत कीजे, नही तो भला अकेला ।। 

(140) वाणी- 

अयोध्या राम के पीछे थी राम अयोध्या के पीछे नही थे। 

(141) वाणी-

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा श्री महादेवजी से बड़ा कोई देव नही। महिमा स्त्रोत से बड़ा कोई स्त्रोत नही ।। अघोर मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नही । श्री "गुरू" से अधिक कोई तत्व नही ।।


(142) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा एल्यूमिनियम के बर्तन में कोई चीज पकाकर नही खाना चाहिये या दही भी एल्युमिनियम के बर्तन में नहीं जमाना चाहिए इससे टीवी की बीमारी होती है।


(143) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा प्रत्येक राज्य में कानून रहता है। उसी प्रकार श्री भगवानजी ने भी कानून बना दिये है उनके कानून के अन्तर्गत चलोगे तो मनुष्य जन्म सार्थक हो जावेगा। नही तो मनुष्य और पशु में कोई फर्क नही ।


(144) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा नर्मदाजी के किनारे रहने वाले लोहे के बन जाते है। नर्मदाजी के किनारे जगली जानवर शेर रहते है उन्हें सम्हालना पड़ता है। दिल कड़ा करके रहना पड़ता है श्री दादाजी चुंबक है। श्री दादाजी अपने बच्चों को अपनी ओर चुंबक के माफिक खींच लेते है।


(145) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अपने को कर्मों का कर्ता ना मानें । 


 (146) वाणी- 

 श्री हरिहर भगवानजी ने कहा तू सुख रहित और क्षण भंगुर इस मनुष्य शरीर के प्राप्त होने से निरन्तर मेरा ही भजन कर।


(147) वाणी- 

जो भगवानजी के शरणागत हो जाता है उसके उपर कोई कष्ट नहीं आते।


(148) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा सूर्य उदय के बाद में उठने से दरिद्रता आती है। इसलिये सूर्य उदय के पहले उठ जाना चाहिये। 


(149) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अनेक जन्मों में भगवान के भक्त बनते-बनते तब फिर भगवान की प्राप्ति होती है।


(150) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जब गुरू ने रास्ता बता दिया। गुरू के मार्ग पर नही चलोगें तो गुरू वहाँ नही पहुँचायेगा।


(151) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा 

प्यास न जाने धोबीघाट ।

इश्क ना माने जात पात । 

नींद न माने टूटी खाट ।

भूख ना माने झूठा भात ।। 


(152) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जीव समझे कि अभी इस जन्म में कुछ कर लिया अगले जन्म में कुछ और कर लेगे। ऐसा नही है। जीव को इसी जन्म में मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्न करना चाहिये। 


(153) वाणी- 

श्री बड़े दादाजी तीन बार चिता में गये और फिर कुछ दिनों बाद उसी स्वरूप में प्रगट हो गये।


(154) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जीव स्वतन्त्र नही है वह माया से बंधा है सब दुनिया भी मकड़ी के जाल माफिक बंधी है। माया भगवानजी के अधीन है


भावार्थ अतः माया के बंधन से मुक्त होने के लिए जीव को भगवानजी की शरण में जाना पड़ता है।


(155) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसने मन को कब्जे में कर लिया उसने संसार जीत लिया।


(156) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा

जिसका खाना पीना बिगड़ा, उसका जन्म बिगड़ा ।

जिसका कर्म बिगड़ा, उसका परलोक बिगड़ा ।


(157) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा गीता दो लोगों की है। 

पहला- उस मार्ग पर चलने वाले की।

दूसरा- गीता पढ़कर उसका अध्यन करने वाले की । 


(158) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जब श्री दादाजी उज्जैन गये तो सब तीर्थ वहां आकर दादाजी से मिल गये कभी कोई तो कभी कोई । 


( 159 ) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जहां गंगाजी, जमनाजी, नर्मदाजी बहती है। ऐसा भारतवर्ष जैसा कोई देश नही है। 


(160 ) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा श्री दादाजी ने हिन्दुओं के लिये केसरिया बाग लगाया लेकिन हिन्दू लोग उसका मजा नही ले पाये।


(161) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा ये नर्मदा खंड बड़ी पवित्र तपो भूमि है जैसा कर्म करे वैसा फल मिले। इस भूमि बराबर भूमि नही ।


(162) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो सन्मार्ग पर चलता है उसे मैं देखता हूँ और आगे पीछे जब उचित समझता हूँ उसका बेड़ा पार कर देता हूँ।


(163) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मंदिर बनाने में जीविका अवश्य लगाना चाहिये तथा मन्दिर ऐसा बनाना चाहिये जिसके पीछे कुत्ते न मूतने पावे नही तो बनाने वाले को अधोगति प्राप्त होती है। 


(164) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा काया माया और छाया तीनों मनुष्य के साथ रहती है।

भावार्थ— काया (शरीर) माया भी शरीर के साथ ही लगी रहती है और इसी माया के प्रभाव से मनुष्य अपने मूल स्वरूप को भूल जाता है और शरीर को ही अपना मूल स्वरूप समझने लगता है जबकी उसका मूल स्वरूप आत्मा है ।


(165) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा गृहस्थ हो या बाबाजी जीवन को सार्थक (सफल) करने के लिये श्री दादाजी का सतत नाम स्मरण करना चाहिये।


(166) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा कुछ नही हो तो खूब हवन करे और प्रकाश में मस्त रहे। (सूर्य के सामने रहने से प्रकाश रहता है।)


(167) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मै तो परसादी (प्रसन्नता चाहने वाला) भगत हूँ।


(168) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा सद्गुरू केवल एक दादाजी है। सबको सेवा का अधिकार है। 


(169) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा भूखे मनुष्य को चाहे जबर होवे चाहे गरीब होवे भोजन कराने से आत्म संतोष मिलता है।


(170) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जैसे-जैसे आत्मा निर्मल होती जाती है। वैसे वैसे ही परमात्मा की झलक दिखने लग जाती है।


(171) वाणी-

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा केशव चरित्र गान करके भवसागर तर जाओगे।


(172) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मनुष्य जन्म में ही जो कुछ सुधार करना हो वह कर लो फिर अन्य दूसरे जन्मों में मुश्किल है। 


(173) वाणी- 

श्री भगवान जी कहते है, हमने अपनी खुशी पर सबको छोड़ दिया है चाहे कोई गोबर खावें, चाहे हलवा खाये या अपना जन्म सुधार लेवे।


(174) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा चन्द्रमा की कला से अहिल्याजी हुई, सो गौतम ऋषि को दी। सूर्य की कला से अनुसइया हुई, सो अत्री मुनी को दी। अनुसइया से दत्तात्रेयजी हुए।


(175) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जो कोई हमारी शरण में आवें उसको कोई नहीं मार सकता है।


(176) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा ताप्ती जी बड़ी तपस्विनी है श्रीराम वनवास गये तब ताप्तीजी में नहाकर गये थे। (श्री भगवानजी ने भी मुलताई में ताप्तीजी में स्नान किया ।)


(177) वाणी -

श्री भगवान जी ने कहा सब मारने खाने वाले है। सिर्फ श्री दादाजी ही रक्षा करने वाले है।


(178) वाणी- 

गुरु श्री दादाजी समुद्र है। जिसको जितना लगे ले लेवे जैसे नर्मदाजी में चिड़िया मुँह भर भर कर चाहे जितना ले ले। 


(179) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसको दिखाई ना पड़े, जो अपने में ही रहे, उसे समझाना, बतलाना भी नही चाहिये । 


(180) वाणी- 

जो कुछ भगवानजी ने दिया उसे बे फालतू खर्च नही करना चाहिए। नही तो कभी दूसरो का मुँह देखना पड़ता है। 


(181) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मृत्यु में अपार शक्ति है उसको कोई नही जीत सकता।


(182) वाणी- 

श्री बड़े दादाजी ने भगवानजी को कहा मोहनी रूप दिखाओ, जो भस्मासुर को भस्म किया था


(183) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मनुष्य को भेड़िया घसान के समान नही करना चाहिये। एक लड़ैया ने हुवा कहा तो सब हुवा हुवा चिल्लाने लगते है, अपनी विवेक बुध्दि से निर्णय लेकर उचित हो वह करना चाहिये ।


184) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा लक्कड़ को, पत्थर को और दुश्मन को ऐसा पकड़ना चाहिये कि छूट न जाय नही तो वगैर नुकसान किये नही रहता ।


(185) वाणी- 

श्री दादाजी महाराज हर बात में समर्थ है, अतः उनका स्मरण करके सब दुःखो को भूल जाना चाहिये । 


(186) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा दो व्यक्तियों से बात नही करनी चाहिये एक जो बात को बीच में ही काट देवे। दूसरा वो जो चिलम बीच में लेवे। बात उससे करनी चाहिये जो सुन ले और मान लेवे।


(187) वाणी- 

भगवानजी के दरबार में आकर भगवानजी का ही कहना मानना चाहिये किसी का भी नही मानना चाहिये। भगवानजी बड़े दयालु है।


(188) वाणी-

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मन का वास आखों में है जैसी आंख घूमती है मन वैसा घुमता है। आँखे बन्द करके भजन करना चाहिये ।


(189) वाणी- 

श्री भगवानजी से पूछा की दुनिया में सबसे बड़ी चींज क्या है? तो बताया की बड़ी चीज भक्ति है।


(190) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा-

सुख का मूल संतोष में है। 

बिना सन्तोष के सुख नही ।।


(191) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा धूनी को बिना आज्ञा नही छेड़ना चाहिये। बिना नहाये भंडार में नहीं घुसना। टिक्कड़ प्रसाद नही फेकना । चोरी नही करना, झूठ नही बोलना। पराई नारी से नही मिलना।


(192) वाणी- 

भगवान भक्तों को तपाते है। 

भावार्थ - भगवानजी भक्त की परीक्षा लेते है, जो भक्त श्री दादाजी महाराज का नाम स्मरण करता रहता है उसको ऊर्जा देकर उसकी मनोकामना को पूरी कर देते है।


(193) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा सूर्य से सूर्य ही पैदा होगा, अग्नि से अग्नि ही जलेगी किन्तु सद्गुरू के बच्चो को सद्गुरू की तरह ही मानना चाहिये। 


(194) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा मृत्यु का भय मत करो।

क्योकि उसमें भी श्री दादाजी महाराज ही है। 


(195) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा सन्देह निकाले वो सन्यासी, इस सन्देह को निकालने के लिये नित्य ध्यान लगाकर संध्या की जाती है।


(196) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा भक्ति में भोलापन और,

सीधापन, रहता है, चाहे वह धनवान हो या गरीब। 


(197) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा अपने कुल की रीत नही छोड़ना चाहिये।


(198) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा जिसकी बुध्दि शुध्द रहती है, वो मेरी भक्ति में लगा रहता है। 


(199) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा—

भगवानजी के बच्चे कभी भूखे नही रहेगें।

किसी को भूत बाधा होवे और वह श्री दादाजी का नाम लेवे तो भूत भाग जाते है। 


(200) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा— 

वृक्षों में पीपल, इन्द्रियों में मन

देवों में कामदेव, कालों में महाकाल, 

नदियों में गंगा, महिनों में मगसर,

इन सब में मैं ही हूँ।


(201) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा—

मनुष्य को चार बाते दुर्लभ है।

(1) सद्गुरू कृपा

(2) तत्व दर्शन (याने भीतर क्या है)

(3) सहज वृत्ति (सुख दुख से सम भाव)

(4) विषयों का त्यागी होना । 


(202) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा बर्तन में स्वच्छ पानी हो तो बर्तन का पेदा साफ-साफ दिखाई देता है। उसमें गंदा पानी हो तो कुछ नही दिखता। हृदय भी स्वच्छ पानी की तरह साफ रहना चाहिये तब उसको ज्ञान होता है और समझ भी सकता है।


(203) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा राम अवतार में जिन भक्तों को दर्शन नहीं हुआ था, सो श्री दादाजी ने अवतार लेकर दर्शन देकर चले गये। 


(204) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा कंजूस अच्छा जो धीरे-धीरे मार्ग पर चलता रहता है। 

भावार्थ,— धीरे धीरे सही मार्ग में लगा हुआ व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। 


(205) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा पैसे का ख्याल नही करना चाहिये आत्म संतोष करना चाहिये। 


(206) वाणी- 

जैसा दादा दिखाय वैसा कह देना चाहिये, नही तो गांठ पड़ जाती है। वों छूटती है किन्तु धीरे से छूटती है।


(207) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा ब्राम्हण में शीलता (सीधापन) होना चाहिये फिर तो वो नहीं पढ़ा हो तो भी हम पढ़ा देते हैं। 


(208) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा मैं जरा में तो राजी हो जाता हूँ और जरा में नाराज हो जाता हूँ।

भावार्थ —अतः अपने अहम को छोड़कर सेवा में तत्पर रहना चाहिये। 


(209) वाणी- 

श्री हरिहर भगवान जी ने कहा बच्चों को खिलाने पिलाने और पहराने का लाड़ करे, गड़बड़ करे तो उसे उचित बात समझायें फिर भी न माने तो सख्ती के साथा पेश आये।


(210) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा त्रिदेव का फल (आवला हर्रा बेहड़ा विष्णु, शंकर, ब्रम्ह्मा ।) का सेवन नित्य किया करो। 


(211) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा धर्म की जड़ सदां हरी होती है। धर्म करने से धन नहीं घटता ।


(212) वाणी- 

श्री दादाजी ने भगवानजी से कहा की सब की हाँ में हाँ करते जाना, और जो जैसा होवे वैसा ही देकर निकल जाना। 


(213) वाणी- 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा उज्जैन में महाकाल के पीछे बूढ़ा काल है बावली में रहते है किसी को दिखते नही। श्री दादाजी गये थे तब आये थे।


(214) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा घाम (धूप) में क्यो रहते हो छाँव में आ जाओं अर्थात क्रोध न कर शांति धारण करो। 

(215) वाणी - 

श्री हरिहर भगवानजी ने कहा पेट के बच्चे की आशा करके गोद के बच्चे को फेक नहीं देना चाहिये।

भावार्थ— यदि एक संतान पेट में है, तथा दूसरी गोद में तो फिर दोनों का ही बराबर ख्याल रखना चाहिये। वर्तमान को संभालो तो भविष्य अपने आप ही सुधर जाएगा।


                          ।।  इति शुभम्  ।।



जय श्री दादाजी की








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