श्री दादाजी महाराज का साईखेड़ा त्यागना
सन् 1928 में साँईखेड़ा में लाखो लोग श्री दादाजी महाराज के दर्शन करने आते थे। कुछ स्वार्थी लोगों ने यहाँ भी चोरी चपाटी लूट खसोट शुरू कर दी। वहाँ के साधू सन्तो के विरूध्द षडयंत्र शुरू करा दिये।
यहाँ तक कि श्री हरिहर भोले भगवान पर भी नग्नावस्था में रहने का मुकदमा दायर करवा दिया। बाद में स्वयं पुलिस ने जाँच के बाद में यह मुकदमा उठा लिया ।
श्री दादाजी महाराज अन्तर्यामी थे वे पल-पल की खबर रखते थे। छोटे-छोटे दुकानदार भी श्री दादाजी महाराज के भक्तो की बाढ़ में हाथ धो धोकर लक्षाधीश बन बैठे थे। अतः साँईखेड़ा में ऐसे लोगो की संख्या ज्यादा हो गई थी।
ऐसे अपवित्र वातावरण से दादाजी महाराज ने सॉईखेड़ा छोड़ने का निश्चय किया और एक दिन आप नरसिंगपुर के पास झरने पर रहने चले गये। जिस दिन से श्रीदादाजी ने सॉईखेड़ा छोड़ा उसी दिन से साँईखेड़ा में हैजा की बीमारी शुरू हो गई। सैकड़ो लोग प्रतिदिन हैजे से कालकवलित होने लगे। अब लोगो के समझ में आया। तुरन्त ही बहुत से लोग श्री दादाजी महाराज को वापिस साईखेडा लेकर आ गये। श्री दादाजी महाराज के वापिस सॉईखेड़ा आते ही हैजा शान्त हो गया। परन्तु श्री दादाजी महाराज का मन अब सॉईखेड़ा से उब गया। था।
जनवरी 1929 में एक दिन अचानक श्री दादाजी महाराज ने फिर से साँईखेड़ा त्याग दिया। नर्मदा मइया को पार करके आप दूसरे किनारे जा पहुँचे। अब श्री दादाजी ने साँईखेड़ा पूरी तरह से छोड़ दिया फिर वे कभी सॉईखेड़ा वापिस नहीं आये।
साँईखेडा छोड़ने के बाद बड़े दादाजी महाराज गाड़ी में बैठे उस गाड़ी को भक्तगण दादाजी महाराज का जयकारा करते हुए गाड़ी को खीचते रहे गाड़ी के साथ में श्री छोटे दादाजी महाराज, श्री गंगाधर ब्रह्मचारी जी. मुरलीधरजी बड़े भैया तथा बहुत से भक्तगण भी साथ में थे। नगाड़ा एवं शंख की ध्वनियाँ भी गूँज रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे साक्षात शंकर भोले की सवारी चल रही हो। हजारों भक्त दादाजी महाराज के सम्मुख चढ़ावा चढ़ाते थे और वही प्रसाद के रूप में बांटा जाता था। हजारो भक्त दादाजी के सम्मुख अपनी मनोती पेश करते एवं श्रीदादाजी महाराज सभी की मनोती पूरी करते थे।
श्री दादाजी हनुमान बाग में-
श्री दादाजी महाराज बरेली, आवलीघाट, बुदनी, होंशगाबाद, खातेगाँव होते हुए सन् 1929 में उज्जैन से आधा मील दूर बडनगर मार्ग पर हनुमान बाग में अपना पड़ाव डाला ।
ग्रीष्म ऋतु की प्रखरता बढ़ रही थी ऐसे ही समय मे श्री दादाजी महाराज सारे परिवार समेत यहाँ पर ठहरे। उस बगीचे में एक कुआ था जो वर्षों से सूखा था। भक्तो ने श्री दादाजी से आग्रह किया कि काफी प्रयास के बाद भी यहां पानी नही निकल रहा है। श्री दादाजी बोले अरे मोडा क्षिप्रा मइया बहुत दिनों से भूखी है इन्हें बाटी और टिक्कड खिलाओ। जाओ भंडारा तैयार करो। कुछ ही देर में नेवैध की थालियाँ सजकर श्री दादाजी महाराज के पास आ गई।
तब श्री दादाजी ने क्षिप्रा मइया का आव्हान कर कहा ओ क्षिप्रा मोड़ी आओ इते आओ टिक्कड़ बाटी खाओ। ऐसा कहते हुए उन्होंने नैवैध की थालियाँ सूखे कुएँ में डाल दी। देखते-देखते सूखे कुए में पानी के झरने फुटने लगे और लबालब कुँआ भर गया। चारो ओर दादाजी की जय जयकार की आवाज गुजने लगी।
तब श्री दादाजी हँसते हुए कहने लगे अरे क्षिप्रा मइया भोजन करने अपने दरबार में आई है। माताजी की आरती उतारो तुरन्त सभी भक्तो ने वैसा ही किया। उज्जैन में हजारो भक्त श्री दादाजी के दर्शन करने आते एवं उन्हें प्रतिदिन प्रसाद प्राप्त होता था श्री दादाजी महाराज का भंडारा सतत चालू रहता था।जहाँ साधु सन्त भोजन ग्रहण करत थे। उज्जैन में श्री दादाजी महाराज सन् 1930 तक ठहरे फिर खण्डवा की ओर प्रस्थान किया।
सन 1929 में आप का डेरा उज्जैन के हनुमत बाग में था।नागपुर के तेलन खेड़ी बगीचा के पास कल्याणसर महादेव जी के मंदिर में श्री दादाजी एक परम भक्त "मारवाड़ी ब्राह्मण साधु" अलमस्त बने पड़े रहते थे। उन्हें मारवाड़ी बाबा कहते थे लोगों की वहां यदा-कदा भीड़ भीड़ लगी रहती थी। अचानक वे बाबा परम पिता श्री दादाजी को मिलने उज्जैन गए वहीं उनका हनुमत बाग में देहांत हो गया यह खबर बड़े दादा जी को तुरंत दी गई। तब हंसते हुए परम पिता दादा जी बोले कि यह नागपुर वाले मोड़ा को नजदीक के मसान में गाड़ दो। आज्ञा होते ही तुरंत शव को उठाया और नजदीक रास्ते के उस पार गाड़ दिया गया। लेकिन मुसलमान कब्रिस्तान में एक हिंदू की लाश गाड़ना कानून विरोधी हुआ मुसलमानों ने सरकार को रिपोर्ट की सरकारी नोटिस बड़े दादा जी के नाम से श्री दादा परिवार में आया तब बड़े दादा जी जोर जोर से हंसने लगे और कहने लगे यह रियासत बड़ी खराब है चलो रे मोरा चलो डेरा उठाओ।
हम काशी के वासी हैं, विश्वनाथ कैलाशी है।
निर्मल गंगा बहती खासी है, हम काशी जी के वासी हैं।
हांको रे हांको! हमारी गाड़ी! हम काशी चलेंगे।
यह गीत श्री बड़े दादा जी गा रहे थे और परिवार डेरा उठा रहा था। बड़े दादा जी को रथ में बिठाया गया भक्त परिवार गाड़ी को खींचते थे और मुख से निम्न गीत गाते थे।
हर हर महादेव शंभू । काशी विश्वनाथ दादाजी ।।
श्री दादाजी का बड़वाह आगमन
उज्जैन से परिवार सहित प्रस्थान कर देवास, इन्दौर आदि भ्रमण करते हुए श्री दादाजी महाराज सन् 1930 के जेष्ठ मास में श्री नर्मदा तट पर बड़वाह में सेठ सुन्दरलालजी की धर्मशाला के पास मुक्काम किया। यही बडवाह में आषाढ़ पूर्णिमा पर गुरूपूर्णिमा महोत्सव हुआ तथा दीपावली भी वही मनाई गई यहाँ करीब छः माह तक रूके। उसी वर्ष बारिश में माई नर्मदाजी पूरे वेग और उफान पर थी। भक्त घबरायें हुए थे और श्री हरिहर भोले भगवान छोटे दादाजी के पास आये। छोटे दादाजी ने कहाँ चलो श्री दादाजी महाराज से प्रार्थना करते है। भक्तो के आग्रह पर बड़े दादाजी नर्मदा के किनारे ऊँचे स्थान पर बैठे हुए थे। श्री दादाजी महाराज ने उसी ऊचे स्थान पर बैठकर अपना दाहिना पैर लम्बा किया और नर्मदाजी में अपना अगूठा डूबा दिया। देखते ही देखते नर्मदा मैय्या 10-12 हाथ नीचे उतर गई। भक्तों के द्वारा श्रीदादाजी की चारो तरफ जय जयकार होने लगी। श्री दादाजी महाराज ने जिस स्थान पर बैठ कर अपना अंगूठा नर्मदा मैय्या में डुबाया था। वहा पर श्रीरामदयाल महाराजजी ने श्री दादाजी की चरण पादुका स्थापित कर श्री दादाजी महाराज का भव्य मंदिर बनवाया हैं।
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