श्री दादाजी महाराज ने बड़वाह से खण्डवा के लिये प्रस्थान किया रास्ते में नर्मदा नदी पर श्री दादाजी ने भक्तों से कहा मोड़ा ओ यहां पर पानी पी लो। आगे पानी नही मिलेगा। फिर पानी पीने के उपरान्त सब भक्तों ने श्री दादाजी महाराज की आरती उतारी और खण्डवा की ओर प्रस्थान करने लगे। खण्डवा में तुलजा भवानी माता के पास जंगल था। रात में सब भक्तों सहित श्री दादाजी महाराज और श्री छोटे दादाजी ठहर गये सबेरे होते ही श्री दादाजी बोले मोड़ा हो गाडी हाँको अपन काशीजी चलेगे। श्री दादाजी की वाणी सुनकर सब गाड़ी खीचने लगे। इसी समय में नौजा बाई (पार्वती बाई जबलपुर वालो की बहिन) दौड़ी दौड़ी आई और श्री दादाजी के रथ के सामने आकर खड़ी हो गई। और बोली दादाजी मैं आपको नहीं जाने दूँगी। आपने साईखेड़ा में मुझे वचन दिया था कि मोड़ी मैं तेरे यहां जब आऊंगा तब तसमई और मालपुआ खांऊगा तो आप मालपुआ तसमई खाकर जाओगें तो जाने दूंगी नहीं तो मैं आपके रथ के नीचे प्राण दे दूँगी। श्री दादाजी भक्त की दीन पुकार सुनकर बोले.. मोड़ी प्राण क्यों देती है जा कढ़ाई चढ़ा दें। और उसी वक्त मालपुआ तसमई बनने लगी। और श्री दादाजी ने काशी जाना स्थगित कर दिया। उस समय खण्डवा निवासी श्री गंगाप्रसाद मास्टर ने अपनी गोद में लेकर श्री दादाजी महाराज को रथ से नीचे उतारा।
श्री दादाजी महाराज को जिस जगह उतारा गया वहां एक विशाल तख्तपोश रखा गया उस पर गद्दीया डाली गई और बड़े दादाजी को उस पर आसीन किया गया। जिस स्थान पर वह तख्तपोश रखा हुआ था उसी स्थान पर आज पूज्य श्री दादाजी महाराज की समाधि है।
मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष नवमी के दिन सायंकाल को श्री दादाजी महाराज ने थोड़ी सी खिचड़ी खाई, थोड़ी सी भंग का सेवन किया और तकिये से टिककर लेटे गये। उन पर एक रजाई उढ़ाई गई तख्तपोश पर एक छाया मंडप भी खड़ा किया गया था। दूसरे दिन सांंझ तक पूज्य दादाजी लेटे ही रहे। दर्शनार्थियों की भीड़ बढती जा रही थी। अतएव उस तख्तपोश के चारो और लकड़ी का कटघरा बनाया गया। ताकि पूज्य बड़े दादाजी को भीड़ के कारण तकलीफ न हो। इसी अवस्था में दशमी का दिन बीता तथा एकादशी हुई। द्वादशी को सांंझ का समय हो चला भक्तजन सोच रहे थे कि पूज्य बड़े दादाजी बहुत दिनों के बाद शान्ति के साथ शयन कर रहे है। उस समय धूमधाम से भजन कीर्तन चल रहा था।
तभी एक पुलिस के सर्कल इंस्पेक्टर कुछ आदमियों के साथ वहां आये। सभी को आश्चर्य हुआ। तभी उस पुलिस अधिकारी ने श्री छोटे दादाजी से धीरे से कहा। आज किसी अनजान साधू ने पुलिस थाने में आकर यह रिपोर्ट दी की श्री बड़े दादाजी समाधिस्थ हो गये। है। लेकिन उनके भक्त गण निश्चिन्त बैठे हुए है। पता नहीं वह साधु कौन था।
सभी भक्तगण रात्रि का समय होने के कारण आराम करने चले गये। लेकिन श्री गंगाधर ब्रह्मचारी जी, श्री छोटे दादाजी, श्री मुरलीधर बड़े भैया तथा गुप्ता जी अन्दर से बैचेन थे। श्री छोटे दादाजी की आज्ञा से चंवर डुलाने वाला पूज्य श्रीदादाजी को उडाई हुई रजाई हटाकर देखने के लिये आगे को बढ़ा। ज्यों ही रजाई हटाई सभी को सहस्त्रो बिच्छुओं के दंश की भाँति झटका लगा और वे निश्चल खड़े रह गये। श्री छोटे दादाजी कटघरे को पकड़कर एकदम नीचे बैठ गये।
पूज्य बडे दादाजी का चेहरा कृष्णवर्ण हो निस्तेज व किंचित विकृत सा हो गया था। श्री छोटे दादाजी तथा मुरलीधर बड़े भैय्या रो पड़े श्री ब्रह्मचारी ने तत्काल उन्हे शान्ति रखने की सलाह दी और आगे की विधि पूर्ण करने के लिये सचेत किया।
जिस जमीन पर पूज्य बड़े दादाजी ने चिरविश्राम लिया उस जमीन के मालकिन को खबर की गई उस जमीन की मालिकन एक तेलिन थी। सुबह होते ही वह तेलिन श्री छोटे दादाजी के पास पहुँची पूरा वृतान्त सुनकर वह भी शोक मग्न हो गई उसने 24 बांये 24 की जगह श्री दादाजी के नाम पर दान कर दी। और बाकी सोलह एकड़ जमीन के वाजिब दाम लगा दी। तत्पश्चात श्री छोटे दादाजी ने ऐलान कर दिया कि पूज्य बड़े दादाजी का महानिर्वाण हो गया है।
श्री बड़े दादाजी का खण्डवा में समाधिस्थ होना
पूज्य बड़े दादाजी के महानिर्वाण कि दुखद वार्ता पल भर में दूर दूर तक भक्तों में फैल गई। भक्तगणों के झुण्ड पूज्य श्री दादाजी के अन्तिम दर्शन के लिये खण्डवा आ पहुचे। मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष तेरहवी सन् 1930 की प्रातः बेला में समाधि की तैयारी शुरू हुई। जिस स्थान पर कटघरा बना था वहां 12 फुट लम्बा व 10 फुट चौड़ा और थोड़ा गहरा गढ्ढा खोदा गया भीतर ईट चूना व सीमेन्ट का प्लास्टर लगाया गया। समाधि स्थल में डालने हेतु करीब तीन मन कपूर जो इन्दौर में मिल सका वहाँ से बुलाया गया। हार फूल आदि वहाँ से बुलाया गया। समाधि स्थल में चंदन की लकड़ी व कपूर की शय्या बनाई गई उस पर कीमती वस्त्र डाला गया पुनः कपूर का स्तर रखा गया। अंंत मे सभी को अन्तिम दर्शन करने की अनुमति दी गई। गोरज मुहुर्त पर अबीर गुलाल तथा पुष्प चढाकर पूज्य बड़े दादाजी के पार्थिव शरीर की पूजा की गई। जनता के प्रचण्ड आक्रोश के बीच अन्तिम महाआरती शुरू हुई। कुछ समय पश्चात महा आरती समाप्त हुई। गोधूलि की मंगल बेला में जब मेष राशि में चन्द्र था पूज्य दादाजी का नश्वर कलेवर समाधि स्थल में प्रविष्ट किया गया। पूरब में चरण पश्चिम में मस्तिष्क किये। बाई करवट पर पूज्य दादाजी महानिद्रा के हेतु कपूरगुठित चंदन काष्ट की शैय्या पर शयन करने के उपरान्त एक कीमती चद्दर उठाई गई। फिर चारो ओर से कपूर डाला गया। पुष्प चढ़ाये गये और देखते ही देखते पूज्य दादाजी सदा के लिये ओझल हो गये। भक्तगण तो शोक में इतने डूबे की जो जो चीजें उनके हाथ लगी वे समाधि में डालते गये। हजारो रूपयों के जेवरात चांदी सोने के बर्तन कई अनमोल चीजें पूज्य दादाजी के चरणों में चढ़ाई गई। इस कार्य के होते होते रात्रि के 9 बज गये। लगभग उसी समय तीन बड़ी-बड़ी चट्टानों से समाधि पर पर्दा डाला गया 3 दिसम्बर 1930 इसके दूसरे दिन समाधि बाधने का कार्य शुरू किया गया। वह समाधि जमीन से 4 फुट करीब ऊची और मजबूत बनाई गई। इस प्रकार धूनी वाले पूज्य श्री बड़े दादाजी केशवानन्दजी महाराज को खण्डवा में समाधि दी गई।
पूज्य श्रीदादाजी के समाधिस्थ होने पर तेरव्हे दिन बड़ा भंडारा किया गया। अभिषेक आरती कर्मकाण्ड सम्पन्न हुए। आज भी पूज्य बड़े दादाजी की पावन समाधि पर नवधा भक्ति स्वरूप प्रति दिन श्री दादाजी की समाधि का अभिषेक पूजन तथा चार बार आरती व अलग-अलग नेवैध लगाया जाता है तथा इस अद्भुत समाधि के दर्शन मात्र से भक्तों की मनो कामनाएँ पूर्ण होती है।
मुरलीधरजी बड़े भैय्या का सन्यास धारण करना
श्री बड़े दादाजी के समाधि लेने के तेरव्हे दिन मुरलीधरजी बड़े भैय्या ने शिखा व यज्ञपवित्र को उतारकर सन्यास धारण किया। और कुछ समय बाद श्री छोटे दादाजी से आज्ञा लेकर आप होशंगाबाद आ गए तथा वही पर सन 1936 में अपना शरीर छोड दिया तथा श्री दादाजी के पास चले गये।
दोस्तों यदि आपको यह जानकारी अच्छी लगी हैं और आप हमारे काम से खुश है तो आप हमें online Donate (दान) कर सकते है। Plese Click Here For Donate
श्री दादाजी महाराज का खंडवा आगमन..Video देखें.. Please Click Here
0 टिप्पणियाँ