श्री दादाजी दरबार के नियम:-
श्री दादाजी दरबार के नियम श्री हरिहर भोले भगवान (श्री छोटे दादाजी) की आज्ञा से श्री गंगाधर ब्रम्हचारी जी ने लिखे थे। जिनका आज भी श्रीदादाजी दरबार मे अक्षरशः पालन किया जाता हैं।
श्री दादाजी दरबार के 24 नियम इस प्रकार हैं।
1...श्रीयुत् परम पूज्य अमर लोक निवासी श्री श्री 1008 श्री केशवानन्दजी अवधूत उर्फ धूनीवाले दादाजी सुप्रसिध्द बड़े दादाजी के परम प्रिय शिष्य पूर्ण सत्वाधिकारी श्री श्री 1008 श्री हरिहरानन्दजी अवधूत छोटे दादाजी फरमाते है, की श्री दादा दरबार पब्लिक आम जनता की जायदाद नहीं है, बल्कि एक मात्र श्री दादाजी के भक्तों का प्रधान गुरूद्वारा है। यूँ में किसी को बुलाने या नेवता देने नहीं जाता, पर श्री दादाजी के भक्त जन स्वयं ही श्री दादाजी के पूजन-अर्चन-दर्शन आदि के लिये दिन रात आते है व मुझे घेरे रहते हैं, सिवाय मुझे भी श्री गुरूदेव के ध्यान सेवा आदि कार्य से फुरसत नहीं, ऐसी दशा में मैं आगांतुको का जिम्मेदार नहीं। अलबतः यदि भक्त लोग स्वयं सुख व सुव्यवस्था चाहते हो, तो उन्हें मेरे इन नियमों को मान्य करना होगा।
2... श्री दादा दरबार की सीमा के भीतर जो मंदिर, बाग, जलाशय मकान व स्थान आदि हो व होगे, वे सब श्री दादाजी की खास जायदाद समझे जावेगे, उन्हें कोई खरीद फरोख्त रहन बक्षीस न कर सकेगा, न उनमें दुकान आदि रखकर व्यापार आदि कर सकेगा और न उनके द्वारा किराया आदि वसूल कर सकेगा, पर एक मात्र उन सब का उपयोग श्री दादाजी के धर्म-कर्म सेवा आदि के निर्वाह के अर्थ ही किया जा सकेगा, बल्की वही नियम परंपरा तक जारी रखना लाजिमी होगा।
3... यदि कोई भक्त श्री दादाजी के शरण में रहने के लिये आज्ञा पाकर श्री दादा दरबार की सीमा के भीतर कोई मकान बनवायेगा, वह उसमें किसी कार्य के लिये परंपरा तक रह सकेगा, पर भी उस मकान को रहन व्यय न कर सकेगा, अगर धोका देकर करेगा, तो वह नाजायज समझा जावेगा और न कोई किसी दशा में उस पर किसी किस्म की कुर्की डिग्री ला सकेगा और न कभी नीलाम करा सकेगा और न किसी को बक्षीस कर सकेगा, क्योंकि वह मकान ऊपर कहे नियमानुसार श्री दादाजी की जायदाद समझा जायेगा। पर कदाचित उस मकान में रहने वाला चोरी जारी आदि का अपराधी साबित होगा, तो वह श्री दादा दरबार में रह न सकेगा, उस दशा में वह अपना अमला मात्र ले जा सकेगा।
4... श्री दादा दरबार में फालतू आवारा बदमाश आदमियों को आने-जाने व ठहरने का कतई अधिकार नहीं, इसी तरह इस दरबार के विरोधियों को भी यहाँ आने जाने व ठहरने का कतई अधिकार नहीं, अर्थात एक मात्र श्री दादाजी के भक्त लोग ही आ सकते है और आवश्यकतानुसार रह सकते हैं. परन्तु जो सदाचरणी गृहस्थ साधु या स्त्री पुरुष दिलोजान से श्री दादा दरबार कि सेवा करेगे, वे अधिक दिनों तक रह सकेगें।
5... श्री दादा दरबार के उन सेवको को यथा प्राप्य भोजन वस्त्र के सिवाय नकद वेतन न दिया जायेगा, तिस पर भी उन्हें समय समय पर भूख प्यास, मान अपमान, सर्दी गर्मी वर्षा आदि का कष्ट सह कर यथोचित सेवा का कार्य करना होगा, अर्थात कोठार सामग्री, भंडार रसोई प्याऊ पानी प्रकाश सफाई,
झाडन, पोतना, माजना धोना, रथ मोटार, गाड़ी बैल, गौशाला, घास लकड़ी, बाग डेरे, बाजा भजन, पूजन, आरती, हवन, पाठ, पहिरा, रक्षा व्यवस्था, निगरानी आदि का काम तनमन से करना होगा।
6... तिसपर भी जिस दिन जितनी भेंट सामग्री श्री दादाजी के प्रित्यर्थ या मेरे पास आवेगी, उस दिन सिर्फ उतने ही में हवन पूजन भोग की व्यवस्था की जावेगी, उस कारण श्री दादाजी के सेवको और अभ्यागतों को कभी बढ़ियाँ कभी घटिया कभी जल्दी कभी देर से भोजन प्रसाद मिलेगा, बल्कि कभी भूखा भी रहना पडेगा।
7... जो कोई नैवेध प्रसाद इधर-उधर फेंक देवेगा, उसे फिर कभी बिना इजाजत
भोजन दिया न जावेगा।
8... भक्ति मुक्ति के चाहने वालों को चाहिये, कि जो कुछ उन्हें अनायास मिले उसी द्वारा निर्वाह कर ले और प्रसन्नता को ही प्रसाद समझें पर मुख कुछ भी न माँगे और न किसी वस्तु की इच्छा करें।
9... जो सेवक जो काम करेगा, वह उस काम का जिम्मेदार होगा, एवं जो चीजें जिसके सुपूर्द होगी, वही उन चीजों के रक्षण का जिम्मेवार होगा इसलिये बिना इजाजत कोई चीज न दी जावे, और न ली जावें, बल्कि इश्तमाल कि जाने वाली चीजे काम हो जाने पर साफ सुथरी करके वापिस जहाँ की तहाँ पहुंचा दी जाये। यदि कोई इसमें गफलत कर, उसे दुबारा कोई चीज न दी जावे और याद करके वापिस मँगा ली जावे।
10... जिस भक्त व सेवक को दरबार की चीजें बेकदरी से इधर उधर पड़ी हुई दिखे, वह उन्हें उसी वक्त उठाकर ठीक मुकाम पर पहुँचा देवे इसी तरह आरक्षित चीजों को भी उसी वक्त सुरक्षित स्थान पर रख देवे।
8... भक्ति मुक्ति के चाहने वालों को चाहिये, कि जो कुछ उन्हें अनायास मिले उसी द्वारा निर्वाह कर ले और प्रसन्नता को ही प्रसाद समझें पर मुख कुछ भी न माँगे और न किसी वस्तु की इच्छा करें।
9... जो सेवक जो काम करेगा, वह उस काम का जिम्मेदार होगा, एवं जो चीजें जिसके सुपूर्द होगी, वही उन चीजों के रक्षण का जिम्मेवार होगा इसलिये बिना इजाजत कोई चीज न दी जावे, और न ली जावें, बल्कि इश्तमाल कि जाने वाली चीजे काम हो जाने पर साफ सुथरी करके वापिस जहाँ की तहाँ पहुंचा दी जाये। यदि कोई इसमें गफलत कर, उसे दुबारा कोई चीज न दी जावे और याद करके वापिस मँगा ली जावे।
10... जिस भक्त व सेवक को दरबार की चीजें बेकदरी से इधर उधर पड़ी हुई दिखे, वह उन्हें उसी वक्त उठाकर ठीक मुकाम पर पहुँचा देवे इसी तरह आरक्षित चीजों को भी उसी वक्त सुरक्षित स्थान पर रख देवे।
11... जिस वक्त जो सेवक ड्यूटी पर हो, या हाजिर हो, उस वक्त उसी को नफा नुकसान का पुरा ख्याल रखना होगा, साथ ही शान्ति स्थापन रखनी होगी
यदि कोई इत्तिफाक से नुकसान या वारदात हो जावे, तो उसी वक्त मुनासीब कारवाई करनी होगी, वरना वही उसका जिम्मेवार समझा जावेगा।
12... श्री दादा दरबार के सेवकों को बिना आज्ञा कभी किसी के घर पर या अन्यत्र कही बस्ती आदि में न जाना होगा।
13... श्री दादा दरबार के प्रत्येक व्यक्ति को यात्रियों, दर्शनार्थियों व पड़ोसियों के
साथ सदा सभ्यता का बर्ताव करना होगा।
14... आरती पूजन के वक्त सब को खडे होना होगा, यदि कोई खडा न हो सके. तो वह कही अन्यत्र बैठकर पूजा पाठ आदि करे।
14... आरती पूजन के वक्त सब को खडे होना होगा, यदि कोई खडा न हो सके. तो वह कही अन्यत्र बैठकर पूजा पाठ आदि करे।
15... प्रत्येक व्यक्ति को बिना इजाजत कोठार, भण्डार, मोटार, गृह, बैलगृह आदि रक्षित स्थानों के भीतर घुसने की सख्त मनाई है।
16... श्री दादा दरबार के किसी मंदिर, कोठार, भण्डार, धूनी, जलाशय आदि पवित्र स्थानों के भीतर या निकट जूता ले जाने की सख्त मनाई है, एवं वहाँ पर बाथरूम, शौच, जूठन आदि डालने तथा बीडी, चिलम, सिगरेट, गांजा, तम्बाखू आदि पीने की भी सख्त मनाई है।
17... श्री दादा दरबार के बाहर भीतर या देश विदेश में श्री दादा जी के प्रित्यर्थ या मेरे प्रित्यर्थ चन्दा आदि माँगने का अधिकार किसी भी व्यक्ति को नहीं है. इसी तरह श्री दादा जी के लिये या मेरे लिये उधारी चीजें व नगद कर्जा आदि देने लेने का अधिकार भी किसी व्यक्ति को नहीं है, एवं श्री दादाजी प्रख्याती या विस्तार के नाम से चन्दा आदि वसूल करने कराने का तथा पण्डे पुजारी दलाल आदि बनकर किसी प्रकार चढ़ोत्री भेंट आदि वसूल करने कराने का अधिकार भी किसी व्यक्ति को नहीं है।
16... श्री दादा दरबार के किसी मंदिर, कोठार, भण्डार, धूनी, जलाशय आदि पवित्र स्थानों के भीतर या निकट जूता ले जाने की सख्त मनाई है, एवं वहाँ पर बाथरूम, शौच, जूठन आदि डालने तथा बीडी, चिलम, सिगरेट, गांजा, तम्बाखू आदि पीने की भी सख्त मनाई है।
17... श्री दादा दरबार के बाहर भीतर या देश विदेश में श्री दादा जी के प्रित्यर्थ या मेरे प्रित्यर्थ चन्दा आदि माँगने का अधिकार किसी भी व्यक्ति को नहीं है. इसी तरह श्री दादा जी के लिये या मेरे लिये उधारी चीजें व नगद कर्जा आदि देने लेने का अधिकार भी किसी व्यक्ति को नहीं है, एवं श्री दादाजी प्रख्याती या विस्तार के नाम से चन्दा आदि वसूल करने कराने का तथा पण्डे पुजारी दलाल आदि बनकर किसी प्रकार चढ़ोत्री भेंट आदि वसूल करने कराने का अधिकार भी किसी व्यक्ति को नहीं है।
18... श्री दादा दरबार की सीमा के भीतर किसी व्यक्ति को अडंगा लगाकर बैठने का कतई अधिकार नहीं है।
19... श्री दादा दरबार में भिक्षुक, खेल तमाशे वाले गाने बजाने नाचने वाले या किसी प्रकार का चन्दा मांगने वाले धन पाने की इच्छा से कभी न आये।
19... श्री दादा दरबार में भिक्षुक, खेल तमाशे वाले गाने बजाने नाचने वाले या किसी प्रकार का चन्दा मांगने वाले धन पाने की इच्छा से कभी न आये।
20... श्री दादा दरबार में किसी भी व्यक्ति को किसी मत, जाति व राजा के विरुध्द कोई प्रयत्न करने का कतई अधिकार नहीं है। एकमात्र श्री दादाजी की नवधा भक्ति व षोडश विधि पूजन हवन आदि के धार्मिक कृत्य करना सबका परम कर्तव्य है।
21... श्री दादा दरबार में दूषित पुस्तकें लाने, पढने व दूषित गीत गाने की सख्त मनाई है। इसी तरह राज नियम के विरूध्द किसी प्रकार का अस्त्र शस्त्र व प्राण घातक पदार्थ लाने की सख्त मनाई है। एवं चरस मादक कोकेन, मंदिरा, मांस आदि दूषित पदार्थ लाने की भी सख्त मनाई है। योंं जुआँ आदि भी खेलने खिलाने की सख्त मनाई है।
22... याद रहे कि कोठार भण्डार आदि की मुझे कतई आवश्यकता नहीं है, केवल तुम सब भक्तों के हितार्थ है, यों तुम्हारे बढने से काम बढ़ जाता है और घटने से घट जाता है, इसलिये तुम सभी के निर्वाह के काम तुम सभी ने हिल मिल जुल के स्वयं कर लेने चाहिये, बल्कि बिना कहे उन कामों में एक दूसरे को अवश्य सहायता देनी चाहिये, साथ ही काम के वक्त बिना बुलाये हाजिर हो जाना चाहिये, योंं आज्ञा पालन में जरा भी देर न करनी चाहिये ।
23... सबके निस्तार में आने वाले किसी स्थान व किसी पदार्थ पर कोई एक व्यक्ति अपना अधिकार जमा बैठने का प्रयत्न न करे, सिवाय कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई काम न करें, जिसमें श्री दादा दरबार के मान व मर्यादा की अप्रतिष्ठा हो और न कोई ऐसा काम करे, जिसमें किसी धार्मिक कृत्य में बाधा उपस्थित हो।
24... जो उपर्युक्त नियम का पालन न कर सके, जिन्हें उपर्युक्त नियम स्वीकृत न हो उन्हे श्री दादा दरबार में कुछ देने लेने, आने जाने, घुमने ठहरने, कहने रहने तथा इस दरबार के किसी भी काम में हाथ डालने की सख्त मनाई है।
21... श्री दादा दरबार में दूषित पुस्तकें लाने, पढने व दूषित गीत गाने की सख्त मनाई है। इसी तरह राज नियम के विरूध्द किसी प्रकार का अस्त्र शस्त्र व प्राण घातक पदार्थ लाने की सख्त मनाई है। एवं चरस मादक कोकेन, मंदिरा, मांस आदि दूषित पदार्थ लाने की भी सख्त मनाई है। योंं जुआँ आदि भी खेलने खिलाने की सख्त मनाई है।
22... याद रहे कि कोठार भण्डार आदि की मुझे कतई आवश्यकता नहीं है, केवल तुम सब भक्तों के हितार्थ है, यों तुम्हारे बढने से काम बढ़ जाता है और घटने से घट जाता है, इसलिये तुम सभी के निर्वाह के काम तुम सभी ने हिल मिल जुल के स्वयं कर लेने चाहिये, बल्कि बिना कहे उन कामों में एक दूसरे को अवश्य सहायता देनी चाहिये, साथ ही काम के वक्त बिना बुलाये हाजिर हो जाना चाहिये, योंं आज्ञा पालन में जरा भी देर न करनी चाहिये ।
23... सबके निस्तार में आने वाले किसी स्थान व किसी पदार्थ पर कोई एक व्यक्ति अपना अधिकार जमा बैठने का प्रयत्न न करे, सिवाय कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई काम न करें, जिसमें श्री दादा दरबार के मान व मर्यादा की अप्रतिष्ठा हो और न कोई ऐसा काम करे, जिसमें किसी धार्मिक कृत्य में बाधा उपस्थित हो।
24... जो उपर्युक्त नियम का पालन न कर सके, जिन्हें उपर्युक्त नियम स्वीकृत न हो उन्हे श्री दादा दरबार में कुछ देने लेने, आने जाने, घुमने ठहरने, कहने रहने तथा इस दरबार के किसी भी काम में हाथ डालने की सख्त मनाई है।
श्रीयुत् हरिहर भोले भगवान की आज्ञा से लिखा।
श्रीदादा जी का आश्रित,
गंगाधर ब्रह्मचारी श्री दादा दरबार, खण्डवा
आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागर ।
सर्व देव नमस्कार केशवं प्रति गच्छति ।।
आकाश से गिरा हुआ पानी जिस तरह समुद्र में पहुंच जाता है, ठीक उस तरह हे केशव रूप दादाजी प्रत्येक देव को नमन करने से वह नमस्कार केवट आप ही के प्रति पहुंचता है इसलिये आप को ही प्रणाम है।
गंगाधर ब्रह्मचारी श्री दादा दरबार, खण्डवा
आकाशात्पतितं तोयं यथा गच्छति सागर ।
सर्व देव नमस्कार केशवं प्रति गच्छति ।।
आकाश से गिरा हुआ पानी जिस तरह समुद्र में पहुंच जाता है, ठीक उस तरह हे केशव रूप दादाजी प्रत्येक देव को नमन करने से वह नमस्कार केवट आप ही के प्रति पहुंचता है इसलिये आप को ही प्रणाम है।
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श्री दादाजी दरबार खण्डवा |
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Jay shree dadaji
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