साँईखेड़ा में श्री दादाजी महाराज का आगमन
साँईखेड़ा में माता का प्रकोप छाया हुआ था। लोग घरो घर मरते जा रहे थे। सिरसिरी सन्दूक के मालगुजार मुरलीधर के समधी मिठ्दूलालजी साँईखेड़ा के मालगुजार थे। इनके यहाँ मालगुजार का बडा लड़का साँईखेड़ा में माता के प्रकोप से असाध्य रोग से बीमार था। खूब जगह इलाज करने पर तथा डॉक्टरी के तरफ से भी जवाब में घर ले जाने तथा आराम करने का कह दिया था। जब सिरसिरी सन्दूक के मालगुजार ने सुना तो बच्चे को देखने साँईखेड़ा आये। उन्होने बच्चे की हालत देखकर कहा कि हमारे यहाँ श्री दादाजी महाराज रहते है। उनको वहाँ ले आओ। वे सब ठीक कर देंगे। उनकी बात सुनकर साँईखेड़ा के मालगुजार डोली को सजाकर गाँव के 100 लोगों को साथ लेकर श्रीदादाजी को लेने सिरसिरी सन्दूक जाने के लिये रवाना हुए।
वहाँ सिरसिरी सन्दूक में दादाजी सुबह से ही कह रहे थे आज हम साँईखेडा जायेगे। सब गाँव के लोग अचम्भा करने लगे क्योकि सॉइखेड़ा जाना खतरे से खाली नहीं था। वहां देवी प्रकोप का बडा तांडव चल रहा था।
दोपहर में सिरसिरी सन्दूक में सब गाँव वाले आश्चर्य चकित हो गये जबउन्होने साँईखेड़ा के मालगुजार को सिरसिरी में श्रीदादाजी महाराज के पास देखा यह देखकर श्री दादाजी महाराज के हृदय में साँईखेड़ा वासियों के प्रति असीम प्रेम उमड़ पड़ा। श्री दादाजी महाराज ने सॉईखेड़ा के मालगुजार को तुरन्त साँईखेड़ा चलने के लिये आदेश दिया। साँईखेडा पहुचने पर आपको पटेल की गढ़ी में बैठा दिया।
श्री दादाजी का नाम साँईखेड़ा के लोगो ने सुना वे सब श्री दादाजी महाराज के दर्शन को आने लगे। एक बुढ़िया जो अत्यन्त गरीब थी उसने श्री दादाजी का नाम सुना तो शीघ्र ही दो रोटी बिररा की (चना और गेहूँ) एवं चने की भाजी बनाई और उसे लेकर श्री दादाजी के पास दौडकर गई।
श्री दादाजी महाराज ने दोनो रोटी व भाजी उस बुढ़िया से ले ली और भीतर गढ़ी में चले गये अन्दर बीमार लड़का जो सो रहा था। उसे भाजी रोटी खिलाना शुरू कर दिये। घर के लोगों को शंका हुई। डॉक्टरों ने तो खाने के लिये मना कर दिया था और ये खिला रहे है। परन्तु थोड़ी देर के बाद सब देखते है। वह लड़का ठीक हो गया है। इस प्रकार सांईखेड़ा के लोगों में श्री दादाजी महाराज के प्रति श्रध्दा बढ़ गई।
श्री दादाजी महाराज का साँईखेड़ा में आगमन होते ही शीतला देवी का प्रकोप शांत हुआ। गाँव में लोगों का मरना तथा बीमारी से त्रस्त लोग ठीक हुए। चारो ओर आनन्द मनाया जाने लगा।
श्रीदादाजी का जीजी बाई के घर रहना
श्रीदादाजी कुछ दिन मालगुजार की बहन जीजीबाई के घर बेल वृक्ष के नीच ठहरे थे। जब पूज्य श्रीदादाजी का मुकाम जीजीबाई के यहाँ था तब दादाजी महाराज कभी-कभी जीजी बाई की गायों को चराने जंगल ले जाते थे। और शाम को बराबर घर वापिस ले आते थे। गायों की देखभाल बड़े चाव से करते थे। जीजीबाई के आँगन में एक बेल का वृक्ष था। पूज्य श्रीदादाजी कभी कभी उस वृक्ष के नीचे जाकर बैठते और बड़े जोर जोर से "मै शंकर हूँ, मैं शंकर हूँ की रट दिन भर लगाते रहते और फिर स्वयं ही कह कहा लगाकर हँस देते थे। जंगल से गाय चराकर एक दिन लेट होने पर जीजी बाई को श्री दादाजी महाराज पर गुस्सा आया उन्होंने श्री दादाजी महाराज की पिटाई कर दी। श्री दादाजी तो अलमस्त थे। और हँसते रहे उस दिन रात्रि के समय जब जीजी बाई अपने पलंग पर लेटी थी। तब एकाएक उनका पलंग हिलने लगा। पहले वह समझी की शायद कोई भ्रम हो गया होगा। किन्तु कुछ देर बाद पलग फिर जोर-जोर से हिलने लगा तथा नाचने लगा, तब वह घबराई और दौड़कर श्रीदादाजी के पास गई। जाकर जीजीबाई ने श्री दादाजी के चरण छूए और माफी मांगी तब कहीं उसे शान्ति मिली। उस दिन से जीजीबाई श्री जी को साक्षात शंकर भगवान का अवतार मानने लगी और नित्य नियम से उनकी पूजा और सेवा करने लगी।
कुछ दिन जीजीबाई के यहाँ ठहरकर श्री दादाजी महाराज सॉईखेड़ा की गढ़ी में जहाँ एक चबूतरा था उस पर अपना आसन जमा कर बैठ गये तथा वहाँ वे नित्य ही दिगम्बरावस्था में रहते थे। तथा अब वे इस स्थान को छोड़कर कही नही जाते थे। गढ़ी में आते ही उनका सर्वत्र जयघोष श्री स्वामी केशवानंद दादाजी धूनीवाले के नाम से होने लगा और श्री केशवानंद सुकीर्ति इस नाम से प्रसिध्द हुआ।
इस चबूतरे के सामने एक स्तंभ गढ़ा हुआ था इसका कभी- कभी दादाजी मलखम जैसा उपयोग करते थे। इसी कारण लोग दादाजी को पहलवान बाबा भी कहते थे।
शिव लिंग में श्रीदादाजी का विराजमान होना-
जीजीबाई के घर के निकट शिव मन्दिर था जिसमें शिवलिंग था। प्रातः तथा संध्या को वर्षों से जीजीबाई उस शिवलिंग का पूजन करने तथा दीप दान करने के लिये नियम से जाया करती थी। एक दिन जब मन्दिर के भीतर प्रवेश करके जीजीबाई शिवलिंग की तरफ बढ़ी तब यह देखकर दंग रह गई कि शिवलिंग पर श्रीदादाजी महाराज डण्डा लेकर विराजमान है कुछ ही क्षणों बाद श्रीदादाजी महाराज के शरीर में शंकर भगवान के दर्शन हुए। जीजीबाई यह देखकर धन्य हो उठी और जो देखा उस स्वरूप को निहारती ही रह गई। जब थोड़ी देर बाद आँखे खुली तो न वहां श्री दादाजी थे और न महादेव थे। सब कुछ अदृश्य हो चुका था।
दादाजी के मुँह में बंशीधर कृष्ण दर्शन
एक दिन श्री दादाजी महाराज ने सदनसिंह राजपूत से कहा, हम रोज सबको खिलाते है आज तुम अपने हाथों से हमको खिलाओं यह सुनकर बड़ी खुशी से सदनसिंह भोजन अपने हाथ में लेकर श्रीदादाजी महाराज के मुँह में डालने के लिये गया और जब श्री दादाजी महाराज ने अपना मुँह खोला तो सदनसिंह देखता है कि श्रीदादाजी महाराज के मुँह में बंशीवादन कृष्ण भगवान विराजमान है उन्हें देखते ही सदनसिंह आश्चर्य चकित रह गया और फिर दादाजी महाराज के चरणों में गिर पड़ा।
श्रीदादाजी द्वारा धूनी में पानी डलवाना
सिवनी छपारा के मालगुजार सालिकराम श्री दादाजी के अनन्य भक्त थे। श्री दादाजी के दर्शन हेतू साँईखेडा आये थे 15-16 दिनों से वहाँ रुके हुए थे। श्री दादाजी महाराज ने उन्हें लौटने की आज्ञा नही दी थी अतः रुके हुए थे।
एक दिन रात्रि में 11-12 बजे श्री दादाजी ने पटेल साहब को अपने पास बुलवाया और उन्हें बोले अरे जा दूधी मइया के पास जाकर थोड़ा जल लेकर जल्दी से आ जा। श्री दादाजी की आज्ञा पाते ही सालिकराम जी बर्तन लेकर नदी की ओर दौड़ पड़े और पानी से भरा पात्र लेकर श्रीदादाजी के पास आये आते ही श्री दादाजी की आज्ञा हुई कि वह जल धूनी में डाल दे। जल डाल देने पर श्री दादाजी ने उन्हें तुरन्त अपने ग्राम लौटने के लिये कहा। सुबह नही अभी रात में ही जाओ।
आधी रात का समय दूर का सफर जाये तो कैसे? इतने में श्री दादाजी बोल पड़े इसे अभी बाहर निकालो। बड़ी मुश्किल से पटेल अपने गाँव पँहुचे तो वहाँ का दृश्य देखकर रोंगटे खड़े हो गये। पूरा गाँव आगजनी का शिकार हो चुका था। किन्तु सालिकराम पटेल का घर, गौशाला व गल्ला ज्यो का ज्यो था। पटेल याद करके गदगद हो गये कि श्री दादाजी महाराज अपने भक्तों का कितना ध्यान रखते है। वे अन्तर्यामी है।
आज भी श्री दादाजी महाराज के भक्तों की यही श्रध्दा एवं विश्वास है कि हमें हमारे बारे में अपनी चिन्ता नहीं है जितनी श्री दादाजी महाराज अपने भक्तों के सुख-दुःख की चिन्ता करते है और निवारण भी करते है।
अंग्रेज साहब से टोप और कोट उतराकर पहनना-
एक बार एक अंग्रेज साहब और उनकी मेम साहब श्री दादाजी से मिलने गढ़ी में आये तो उन्हें देखते ही दादाजी ने कहा साहब के टोप और कोट उतारो आज हम इसे पहनकर देखेगे। अंग्रेज साहब ने अपना कोट और टोप उतारकर श्री दादाजी के सामने रख दिया। साहब का कोट और टोप पहन कर श्रीदादाजी ने उनसे कहा अरे साहब तू अपने देश में जायेगा हम केले देते है। वह साथ ले जाना। इतने में अंग्रेज साहब यह खेल देख ही रहे थे कि कुछ पारसी लोग बाबई से आये उन्होंने केलो की टोकरी श्रीदादाजी के सामने रख दी। श्रीदादाजी ने वह केले अंग्रेज दम्पत्ति को दिये। साहब यह लीला देखकर प्रभावित हुए और वापिस लौट गये। वास्तव में ये अंग्रेज साहब अपने मन में इंग्लैण्ड लौटने की इच्छा लेकर आये थे। किन्तु श्री श्रीदादाजी से बोल नहीं पाये।
मरे हुए बालक को जीवन दान
प्रताप पटेल को ब्रह्मा, विष्णु, महेश के दर्शन
रेवानन्दजी के शिष्य प्रताप पटेल ने जब धूनी वाले दादाजी महाराज की कीर्ति सुनी तो दर्शन करने की इच्छा से साँईखेड़ा आये। सांईखेड़ा पहुचे तब रात हो चुकी थी। तथा अंधेरा गहरा था। सोचने लगे अंधेरे में श्री दादाजी महाराज से कैसे मिले। उसी समय किसी व्यक्ति ने आकर उनसे पूछा कि क्या आप ही खानदेश के प्रताप पटेल है" प्रताप पटेल ने कहा जी हां मैं ही प्रताप पटेल हूँ तब वह व्यक्ति बोला चलो मेरे साथ मुझे श्री दादाजी महाराज ने तुमको लाने भेजा है। वह व्यक्ति उन्हें एक कुटिया के पास छोड़कर कही एकाएक चला गया। प्रताप पटेल ने कुटिया के भीतर झुककर देखा तो एक दीपक जल रहा था। और उस दीपक के निकट निर्वस्त्र अवस्था में श्री दादाजी धूनीवाले अकेले ही बैठे थे। श्री दादाजी की आज्ञा लेकर कुटिया के भीतर प्रताप पटेल ने प्रवेश किया और श्री दादाजी के समीप जाकर बैठ गया। दीपक के दिव्य प्रकाश में प्रताप पटेल को श्री केशवानन्द दादाजी धूनी वाले के नाना रूप में दर्शन होने लगे। घड़ी में ब्रह्मा, घड़ी में विष्णु, घड़ी में शंकर भगवान के दर्शन हुए। प्रताप पटेल इस तरह श्रीदादाजी धूनीवाले के दिव्य दर्शन कर अपने जीवन को धन्य समझने लगे। प्रताप पटेल कुछ दिनो तक श्री दादाजी धूनी वाले के दरबार में साँईखेड़ा ठहरकर फिर एक दिन श्री दादाजी की आज्ञा पाकर अपने गाँव खानदेश में लौट आये।
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जय श्री दादाजी की |
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