श्री बड़े दादाजी की लीला एवं चमत्कार-
अंग्रेजो से श्रीरामफल दादाजी का व्यवहार-
अंग्रेज भारतीयों से उद्दंडता पूर्वक व्यवहार कर उन पर अत्याचार कर रहे थे। वही श्री दादाजी का नाम सुनकर ही वे लोग थरथर कांपने लगते थे। अंत में उन्हें श्री दादाजी के सामने नतमस्तक होना पड़ता था। उन दिनों अंग्रेज अफसर अपने दफ्तरों में घोड़े वाली बग्गियों अथवा तांगों से आया जाया करते थे। तांगे और बग्गियों कि तेज रफ्तार के कारण भारतीय जनता का उन सड़कों पर चलना बड़ा ही कठिन हो जाता था। यदि भूलवश कोई सड़क पर दिख जाए तो अंग्रेज अपना अपमान समझकर उसे यातना देते अथवा जेल में बंद कर देते थे। श्री रामफल दादाजी अपने योग बल से 10 से 12 फीट हवा में उछल कर उन अंग्रेजों के दौड़ते तांगों में अंग्रेज अधिकारी के साथ बैठ जाया करते थे। अंग्रेज अधिकारी चिढ़कर उन्हें जेल में बंद करवा देते थे। श्री दादाजी को बंद करवा देने के बाद भी श्री दादाजी अधिकारियों को सड़क पर डंडा लिए हुए दिखाई देते थे।
एक बार होशंगाबाद में सभी अंग्रेजों ने एकमत होकर श्री दादाजी को अपनी गिरफ्त में लिया और जेल की सेल कोठरी जिसमें डबल लॉक की व्यवस्था रहती है वहां ले जाकर बंद कर दिया और बाहर से एक बड़ा ताला लगाकर वापस लौटे तो श्री दादाजी जोर-जोर से हंसते हुए जेल के बाहर दिखाई दिए। वे जेल अधिकारी भ्रमित होकर पुनः जेल में जाकर देखा तो वही ताला लगा हुआ है किंतु दादाजी उस कोठरी में नहीं है। उपस्थित अंग्रेज अधिकारियों ने श्रीदादाजी के चरणों में क्षमा मांग कर माफ करने को कहा।
श्रीरामफल दादाजी का कुऍं में कूदना-
सन 1895 में श्रीरामफल दादाजी ने अपना चोला बदलने का निश्चय किया इस कारण होशंगाबाद शहर के बीच में एक कुएं पर दादाजी आकर बैठ गए। मुख से जोर-जोर से श्री मात नर्मदे हर का जयघोष करते हुए अचानक कुएं में कूद पड़े। सभी और हाहाकार मच गया पुलिस भी वहां आ गई और उन्हें कुएं से बाहर निकाला गया। उनका सारा शरीर ठंडा हो गया सभी लोग फूट-फूट कर रोने लगे। पंचनामा बनाया गया कि रामफल दादाजी कुएं में गिरकर शांत हो गए। उसके बाद उनके शरीर का भक्तों द्वारा विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया।
सोहागपुर के जंगल में श्रीदादाजी का प्रगट होना-
सन 1895-1896 में श्रीरामफल दादाजी सुहागपुर के इमलिया नामक जंगल में प्रकट हुए। लोगों को जैसे ही यह खबर लगी वैसे ही इनके पास आने लगे लोगों को उन्हें देखकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ क्योंकि श्रीरामफल दादा का वही स्वरूप आज यहां औदुंबर वृक्ष के नीचे धूनी लगाकर और डंडे को धारण कर बैठे हुए थे। नर-नारी तथा बच्चे-बूढ़े सभी झुंड के झुंड उनके दर्शन करने इमलिया के जंगल में पहुंचने लगे। दर्शनार्थियों की भीड़ निरंतर बढ़ने लगी और जंगल में मंगल जैसा अनुभव होने लगा। लोगों ने दादाजी को पहचान लिया तथा श्रीरामफल दादा जी के नाम से संबोधित करना शुरू कर दिया। कुछ वर्षों तक श्रीदादाजी ने इसी जंगल में धूनी प्रज्वलित कर यहां निवास किया। इस वन में श्रीरामफल दादाजी ने लगभग 10 वर्ष एकांत चिंतन में व्यतीत किए।
सन 1905 में श्री दादाजी सुहागपुर से कूचकर नरसिंहपुर जिले के शक्कर नदी (जो आगे चलकर नर्मदा जी में मिल जाती है) के तट पर ठहर गए और वहीं धूनी प्रज्वलित कि श्री दादाजी अधिकतर शक्कर नदी के घाट पर रहते किंतु यदा-कदा वे नरसिंहपुर अथवा आस-पास के गांव में भक्त परिवार की विनती सुन कर भक्तों के यहां आया जाया करते थे।
श्री दादाजी द्वारा रेत को सोना बनाना-
श्री दादाजी एक बार प्रेमचंद नामक एक कबीरपंथी की विनती पर उसके घर नरसिंहपुर में रुक गए। प्रेमचंद बहुत गरीब था और उस पर बहुत कर्जा हो गया था। उसने अपनी दरिद्र अवस्था के बारे में श्री दादाजी को बताया। श्री दादाजी बोले अरे ओ मोडा जा नर्मदा के पास जा और मेरा नाम बता देना और नर्मदा मां से एक सूपा रेत तो ले आ बे ।
प्रेमचंद अपने घर से सुपा लेकर 12 मिल दूर नर्मदा के बरमान घाट पर गए और मां नर्मदा जी से श्री दादाजी की बात बताकर मां नर्मदा की रेत लाकर श्री दादाजी के समीप रख दी और हाथ जोड़कर खड़े हो गए। श्री दादाजी सुपे से अपने हाथ में रेत उठाकर कुछ देर तक कुछ गुनगुनाते रहे। थोड़ी देर में नर्मदा जी की रेत सोने के सिक्कों में बदल गई। प्रेमचंद यह देख काफी भावुक हो उठा और श्री दादाजी को नतमस्तक होकर स्तुति करने लगा इस प्रकार श्री दादाजी ने उसकी दरिद्रता दूर की और वह सुख पूर्वक रहने लगा।
ब्राह्मण घाट पर श्रीदादाजी महाराज का जल समाधि लेना
सन 1905 में कुछ दिन नरसिंहपुर रहने के बाद सब भक्तों की इच्छा से श्रीरामफल दादाजी ब्राह्मण घाट पर आए। वहां गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजा समारोह का आयोजन किया गया था। इस अवसर पर श्री दादाजी को गुरु बना कर वे लोग गुरु मंत्र लेना चाहते थे। भंडारा तैयार हो रहा था गुरु पूजा हेतु सब तैयारी हो चुकी थी।
श्रीरामफल दादाजी नर्मदाजी में खूब नहाने लगे। वहां कुछ गुनगुनाते हुए वहां आप कभी जोर जोर से हंसते भी थे।बाद में श्रीरामफल दादाजी पानी पीने लगे खूब पानी पीते ही गए। मानो कोई लीला करना चाहते हो। एकाएक जोर से चिल्लाने लगे, मोड़ा अब हम यहां समाधि लेंगे। इतना कहना ही था कि उन्हें अचानक उल्टियां होने लगी। उनका शरीर एकदम नर्मदा जी के जल में गिर पड़ा और प्रवाह में बहने लगा। लोग देखते ही दौड़े और उन्हें नर्मदाजी से बाहर निकाला। किंतु उनका शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ चुका था।
खबर लगते ही पुलिस वहां आ पहुंची। होशंगाबाद वाली घटना की पुनरावृत्ति ना हो इस डर से 3 दिन तक शव जांच के लिए रख छोड़ा। तीन दिन के उपरांत पंचनामा बनाया गया कि श्रीरामफल दादाजी को ब्राह्मण घाट पर हैजा हो जाने के कारण उनकी हैजे से मृत्यु हो गई। बाद में श्रीदादाजी के भक्तो द्वारा उनका विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया।
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।। जय श्री दादाजी की ।।
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