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श्री दादाजी चालीसा पाठ

                 श्री दादाजी विनय चालीसा


                                    (प्रारम्भ )

तुम समान दानी नहीं, दादा दूसर कोय।
दीन दुखी नहिं रहत कोउ, शरणागत जो होय ।।

                 जिमिचातक की आशा जग, स्वॉतिबूंद जो जोय।
                 तिमि दादा जब चरण की, ममहिय इच्छा सोय ।।

दादा दान दया करो, दीन पुकारत द्वार।
गज अज त्राता भांति सज, मोर करहु उद्धार ।।

                 दादा तुम ब्रह्मण्य हो, दादा तप की मूर्ति ।
                 दादा कृपा जो रावरी, कर सकती सब पूर्ती ।।

 यद्यपि हम है पातकी, दादा तप जाजुल्य ।
 आवे सामुहे सौ वापुरो, जुगुनू ज्योती तुल्य ।।

                स्वास्थ में है हम सने, तुम परमारथ काज ।
               "शिवकेक्लोह रूप तब, दादाजी महाराज ।। 

भव भय भीर उतारि जन, विरूद बड़ाई लीन्ह ।
दादा हमारी वेर अब, क्यों अनम करि कीन्ह ।।

                नहिं भूखे तुम द्रव्य के, नहिं भोजन की चाह ।
                रिद्धि सिद्धि तब सन्मुख रहे, मैं वपुरो हौं काह ।।

अन्तः प्रेम प्रतीति भी, नानत हो तुम सोय ।
चहाँ प्रदर्शित जो करन, तो नहिं तुम सो माये ।।

                भूले हम फिर भूलिं करि, दादा दानी पाय ।
                कहिं न सके नहिं करि सके, बात कछू दरशाय ।

तदपि चित्त में आश यहि, दादा दीनानाथ । 
पुजबत मन की कामना, रहत निरन्तर साथ ।।

                शत-शत जन द्वारे खड़े, विनती करें बनाय। 
                दादा सो निज दादा कहि जय बोलत हरषाय।।

बालचरित मम चरित करि, सबको देत भुलाय । 
बोध रूप ह्वैं रहत, मति गति जानि न जाय ।।

                किसकी कहकी बात प्रभु कहत न समुझत कोय।
                अपनी अपनी समझ सब, अर्थ लगावत कोय ।।

दादा जब तक कोप करि, मारत जेहि निजहाथ । 
उसका कुछ कल्याण भी, चित्तहि समुझिस नाथ ।।

               दादा की चितवनि हसनि, मन भावनि सुखदाय।
               ममचितते अवलौं छिनक, मूरति ना बिलगाय।।

जिय चाहत कबहुँकं प्रभु, दरस देहिं सुखदेहिं
गोदी में निज पुत्र सम, करि अपनों रख लेहि ।।

               दादा सो विनती यही, सिर चरणों धरि टेक।
               राखो राखो शरण अब, रखिये जनकी टेक।।

दादा जो बिलगाई हौं, तो प्रभु कछु न बसाय।
पिता पुत्र पै कुटिलहू क्षमि, सुख दें सिखलाय ।।

               हम कलयुग तुम सतयुगी, हम हितुमहिं बड़भेद । 
               अन्धकार में हम सबै, तुम यश गावत भेद ।।

जीवनदान दया करो, दादा सुयश तुम्हार ।
कृपा रावरी के बिना, को करिं है भव पार ।।

               यदपि न बँधुआ तुम प्रभु काहू के जग माहि। 
               प्रेमी जन पै प्रेम में, ज्यों जग में फँस जाहिं ।।

त्यों भक्तन के प्रेम वश, दादा दया तुम्हारी। 
नहीं सुदामा तन्दुलन, गोविन्द कीन्ह चिन्हारि ।।

               आरत हो द्वारे पन्यो, यद्यपि सो लकुचाय। 
               दया दृष्टि की बानसो, दारिद्र द्रतहिं मिटाय।।

सो सेवा नहीं कर सकी, दादा मैं मति हीन ।
मां गेहू पै लायके, सेवा नहिं कछु कीन ।।

                चावल की लखि पोटली, ज्यों माँगत हरषाय।
                पै न सुदामा देत प्रभु, चाहत राखि छिपाय।।

सो गति मेरी जानिये अब, नहिं कछु कहिजाय। 
दादा धनि तव प्रीति है, मोमति अति कुटिलाय।।

                 अन्तःदुखी सुदेखि, प्रभु दीन दीनता देखि ।
                 प्रभुता तीनों लोक की, सकुचि दीन लखि लेखि।।

करजी दादा भक्त जन, अरजी यही हमारी।
गरजी हो आये शरन, मरजी होय तुम्हारी ।।

                तुम प्रभु सबको लखत हो, हमहिं न कोऊ लखाय ।
                 अब लखि लीनो आपको, क्यों द्वार दूसरे जाय ।।

दादा सबकी जानिके, मन धरि करत प्रतीति ।
बाहर भीतर प्रेम लखि, प्रीति करत यह रीति ।।

                दादा की होवे कृपा, उपजे प्रीति प्रतीति ।
                हिय में जिय में सुरति की, बांधत गाँठ सुरीति ।

यह ग्रंथी के बंधत ही, वह गाठी छटि जाय । 
सर्व लोक की ज्योत्सना, बाकी दृष्टि लखाय ।।

                 बिन गुरू कृपा न ह्वै सके, दादा गुरूवरहोय ।
                अन्धकार जग को मिटै, होय प्रकाशित सोय।।

चाह जगत की आपही, पूरी सब हवै जाय। 
रिद्धि सिद्धि वाके आपही, द्वारे सब दरशाय।।

                 दुख विपुरो यह कितक है, जाकी चिन्ता तोहि ।
                 दादा चित दे चितई हैं, अब चिन्ता यह ओहिं ।।

सेवा लखि छतीस सम, पै हिय में छतीन।
कृपादान करिये प्रभु चरण रहों लवलीन ।।

                 शरणगत की व्यथा को, टारे सुयश तुम्हार।
                 दादा की यह बान ही, बिगरे काह हमार।।

टेरत द्वारे दीन रट, दादा होहु सहाय।
तुमहिं न जगकी करि सकै जगत गुरु जगवाय।। 

                 नहिं हितुवा गुरू सब कोऊ, मैं देख्यो यह जाय।                     पदजरज्जन जिन कियो, ताको कुछ नहिं आय ।।

राम हिये शिव रूप वपु, दादा छबि दरसाय । 
वाम भुजा हनुमान श्री, दाहिन शारद माय ।।

                 ध्यान करै यह भांति नित, पढ़ि चालिस जाय ।
                 ताके मन की कामना, दादा पुजबहिं सो पाय ।।

श्री दादा चरणों की, सदा आश हों कोय ।
श्री हरिहर दादा कृपा से, मनकी इच्छा पूर्ण होय ।।

                                शुभमस्तु

                   श्री गौरीशंकर महाराज की जय
                    श्री दादाजी धूनीवाले की जय 
                  श्री हरिहर भोले भगवान की जय
                         श्री मातु नर्मदे हर हर 


जय श्री दादाजी की


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