मंगलाचरण
श्री गुरूदेव - स्तवन
ॐ अवतारवरिष्ठाय श्री केशवानंदाय ते नमः ।।
विघ्नं दात्यनिशं स्वकर्मजमसौ जीवस्य दादात्म भू ।।
भद्रं दारूण कष्टनाशजनितं धातानृणां शिक्षया ।। शश्वत्सर्वसुरार्चितो निजदयोदार: सदैव स्वयं ।
यं नित्यं विधिना भजन्ति शमिनोभूमौ प्रयान्त व्ययं ।।
अथध्यानम्
ॐ धृत्वा दण्डे चरणयुगुलं टिक्कडं वामहस्ते ।
स्तोकं स्तोकं तदपिच पुनर्भक्षयन्तं च तोकैः ।।
यस्मै कस्मै स्वमुखकमलं प्रीतिपूर्व ददानम् ।
कृष्णानंदम् नटवर तनुंं बाललीलं नमामि ।।
वन्दे धूनीधरं दिव्यं दादादेवं दिगम्बरम् ।
सद्गुरूम् सच्चिदानंदम् सुरवंंद्यम् सनातम् ।।
आकाशात्पतितम् तोयं यथा गच्छति सागरम् ।।
सर्वदेव नमस्कारम् केशवं प्रति गच्छति ।।
श्री गौरीशंकर महाराज की जय ।।
श्री धूनीवाले दादाजी की जय ।।
श्री हरिहर भोले भगवानजी की जय ।।
श्री मातु नर्मदे हर हर हर ।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ।
।। केशव विनय ।।
त्रिभंग छन्द
'श्री कृष्णानंदा, आनंदकंदा, नमो मुकन्दा, अविकारी। . सच्चिदानंदा, परमानन्दा, केशवानन्दा, मदनारी ।।
श्री भानूहिंछन्दा, शीर्षहिं चन्दा, स्कन्दहि दण्डा, तमहारी। अंगे सुगन्धा, नग्न निबन्धा, काटे कुद्वन्दा, भवपारी।।
॥ अर्थ ।।
हे कृष्णानंद रूप दादा जी आप आनन्द के देने वाले, असत्य के नसाने वाले, आकार रहित, सच्चिदानन्द रूप, परमानन्द रूप, केशवानन्द रूप, कामदेव के नसाने वाले हो। आप सूर्य रूपी घेरे से घिरे हुए हो, आपके मस्तक पर चन्द्रमा और कांधे पर दण्डा विराजता है। सिवाय आप अज्ञान के नसाने वाले हो, आपके अंग से सुन्दर सुगन्ध निकला करती है, आप सदा नग्न रहते हो, आप भव बन्धनों से मुक्त हैं। आप संसार के बिध्न और दंद-फन्दों के काटने वाले हो तथा आप भवसागर के पार करने वाले हो, ऐसे आप को मेरा प्रणाम है।
।। श्री दादास्तवन ।।
दोहा
गुरू गणेश, गुरूदत्त, शिव!
गुरू दुर्गा, गुरू राम
सर्व देव गुरू रूपमय ।
गुरू को करूं प्रणाम ।।1।।
दादाजी सद्गुरूअमर ।
संतरूप भगवान
जिनके सुमरिन से मिटें।
संकट-कष्ट महान।।2।।
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श्री गणेश का करके वंदन
शुरू करूं गुरू महिमा वर्णन
हे गणपति, है विघ्न विनाशक
सफल करो, मेरे सब कारज ।।1।।
फिर सुमिरूँ मै । शारदा माता
जगत बुद्धि है, जिनसे पाता
वीणा वादक वाग्विलासिनी
दया करो हे प्रेरणा दायिनी ।।2।।
नमस्कार कुल दैवत तुमको
कुलरक्षा का काम है जिनको
रख लेना शब्दों की गरिमा
वर्णित है गुरू दादा महिमा ।।3।।
हे ब्रम्हा, हे विष्णु चक्रधर
जय जय जय शिव शंभु महेश्वर
सकल संत, मुनि, ज्ञानी, योगीजन
करहु अनुग्रह आज कृपाकर ।।4।।
हे परब्रह्म दयालु भगवन
क्षमा करो मेरे सब अवगुण
करहु प्रदान मुझे वह शक्ति
कर पाऊँ श्री दादा भक्ति ।।5।।
वंदऊं गुरूवर गौरीशंकर
भजउं केशवानंद दिगम्बर
हरिहरानंद भोले प्रभुवर
मातृ नर्मदे हर-हर, हर-हर ।।6।।
स्वामी केशवांद सद्गुरू
भक्तों के साक्षात कल्पतरू
सांईखेड़ा में धूनी रमाये
तब 'धूनीवाले' कहलाये ।।7।।
किस कारण धरती पर आये
क्या क्या लीलाएं है दिखलाये
उसका ये वृतांत मनोहर
सुनो हृदय में दादा को धर ।।8।।
पृथ्वी पर जब पाप बढ़ गया
भक्तों का विलाप बढ़ गया
सुनकर उनका आर्तनाद तब
उतरे शिव-शंकर धरती पर ।।9।।
रूप धरा के परमहंस का
शुरू किया दिखलाना लीला
कभी रामफल नाम धराया
कभी 'कृष्णानंद' रूप रचाया ।।10।।
एक रूप से लुप्त हो गये
दूजे से फिर प्रकट हो गये
साईखेड़ा में 'दादाजी' बन
गुरूदेव ने किया अवतरण ।।11।।
चक्रवर्ती सम्राट सृष्टि के
सुन्दर मेघ सुधा-वृष्टि के
फिर भी वेष धरा फक्कड़ का
करें भोग चटनी-टिक्कड़ का ।।12।।
नर के पाप-पुण्य को लिखकर
रचते उसके भाग्य विधिवर
उसी योजना के अंतर्गत
सुख-दुख पाते हैं नारी-नर ।।13।।
दादाजी की जो आये शरण में
नवा के मस्तक गुरू चरण में
प्रेम सहित जो करते भक्ति
दादा उनको देते शक्ति ।।14।।
सरल भक्ति का मार्ग दिखाकर
परमारथ के काज लगाकर
कर देते हैं मन को निर्मल
फिर प्रयत्न नहीं होते निष्फल।।15।।
पाप घटाते, पुण्य बढ़ाते
मन की मैली परत हटाते
जब होता है शुद्ध आचरण
तब दादा देते हैं दर्शन ।।16।।
जिसका हो दुर्भाग्य भयंकर
वो बन जाये दादा किंकर
दादा अपने तेजो बल से
उसका बिगड़ा भाग्य बदलते ।।17।।
निर्धन को धनवान कर दिया
रोगी को बलवान कर दिया
निःसंतान का दुःख हर लिया
बालक देकर गोद भर दिया ।।18।।
दादा का दरबार मनोहर
धूनी प्रज्वलित जहां निरंतर
मिलती यहां सभी को ममता
बसी यहां कण-कण में समता ।।19।।
भभूती से भक्तों को तारे
कभी मार डंडे की मारे
जो डंडे का स्पर्श पा गया
हर संकट से मुक्त हो गया ।।20।।
एक बार रेवा के तट पर
मां एक आयी दादा की दर पर
प्राणहीन बालक को लेकर
विनती करती बिलख-बिलख कर ।।21।।
दादा ने वो लाश उठाकर
दी उछाल धूनी के भीतर
माता समझी लाल चल बसा
लेकिन सच में काल चल बसा ।।22।।
उसके सारे पाप जल गये
दुःख संकट-संताप जल गये
पाकर दादा से नवजीवन
लौटा माँ की गोद में लल्लन ।।23।।
दादाजी की महिमा न्यारी
बिगड़े काज बनाने वाली
मनवांछित फल देने वाली
हर विपदा हर लेने वाली ।।24।।
दादा जी की ख्याति उज्जवल
फैली जग में दुर दुर तक
दर्शन को आते नर-नारी
जनता, नेता, राज अधिकारी ।।25।।
'दादा-दादा' नाम की रटन
सुन्दर कर दे सारा जीवन
दिव्य शक्ति है दादा-धाम में।
दादा-धूनी में, दादा-धाम में ।।26।।
दादा पारस भक्त लौह-कण
बने न कैसे जीवन कंचन ?
दादा जी की पावन धूनी,
भर देती सोने में सुरभि ।। 27 ।।
करके दादा जी का सुमिरन
नित्य नियम से कर लो अर्चन
स्वार्थ और मद मोह भुला कर
हो जाओ सेवा में तत्पर ।।28।।
दुःख जाये, आये सुख के क्षण
शीघ्र-प्रभावी दादा अर्चन
लेकिन जब सुंदर फल पाओ
दादा जी को भूल न जाओ ।।29।।
श्री दादा जी धूनी वाले
भक्तों को प्राणों से प्यारे
कामधेनू सम शुभ फलदायक
कल्पवृक्ष सम तुष्टि प्रदायक ।।30।।
बड़ा सरल है दादा अर्चन
मंत्र जाप से कर लो सुमिरन
वर्णित हैं इस मंत्र की रीति
जपो ध्यान से धर कर प्रीति ।।31।।
पहले 'दत्तगुरू' उच्चारो
उसमें फिर तुम 'ओम' लगा लो
बाद में 'दादा गुरू' पुकारो
एक बार फिर ओम लगा लो ।।32।।
मंत्र नहीं, गुरू-कवच दिव्य यह
पुण्य स्त्रोत अनवरत सिद्ध यह
सुख-संपत्ति, सन्मति उपजावे
भूत-प्रेत सब दूर भगावे ।। 33।।
दादा मुझे निष्काम भक्ति दो
परमारथ की मुझे शक्ति दो
कुछ ऐसा जग में कर पाऊ
तेरा सच्चादास कहाऊं ।।34।।
संकट मुझको अनगिन घेरे
रहा तड़प मैं सांझ सबेरे
राह नजर ना आये कोई
किस्मत जाने कब से सोई ।।35।
आया हूँ मैं दर पर तेरे
भोगे जनम-जनम के फेरे
बुद्धिहीन, मतिमंद, दीन हूँ
लेकिन अब तेरे अधीन हूँ ।।36।।
तुम ब्रह्मा सम भाग्य विधाता
तुम विष्णु सम पालन कर्ता
शिव समान वरदायी तत्पर
आदि-शक्ति सम तुम संकटहर ।।37।।
तेरे भक्त जगत में अनगिन
पर मेरा ना कोई तुम बिन
पापी हूँ पर शरण हूँ तेरे
लाज रखौ अब स्वामी मेरे ।।38।।
दादा का ये दिव्य स्तवन
आलोकित कर देता जीवन
रहे सदा जो दादा नाम पर
दादा उसके नित्य काम पर ।।39।।
जो नित्य पढ़े ये शुद्ध भाव से
दादा छवि उस धरे चाव से
करें कृपा दादाजी उस पर
देकर उसको मनवांछित फल ।।40।।
हम भक्तों की ये विनय अर्चना
दादाजी बरसाओ करूणा
काम-क्रोध-मद-लोभ हटा दो
भक्तों के सब कष्ट मिटा दो ।।41।।
।।दोहा ।।
बल प्रचंड, छवी तेजमय
अंतःकरण उदार,
हे दादा धूनी रमण
कर दो भव से पार ।।
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