श्री रामफल दादाजी का पुनः प्रगट होना :-
खाण्डोन नदी के दूसरी पार श्री क्षेत्र सांईखेडा से छह-सात मील दूरी पर सिरसिरी संदूक नामक गाँव है, वहाँ खांड नामक नदी बहती है। जिसके नजदीक वट का एक बड़ा वृक्ष है। उस वट के नीचे मिट्टी का एक बड़ा बंबीठा था जिस पर एक सर्प बैठा करता था। पास ही में ग्वाले गायों को चराया करते थे। एक दिन एक ग्वाले ने मिट्टी के बंबीठे पर एक बड़ा भारी सर्प बैठा देखा तो तुरन्त सिरसिरी गाँव के मालगुजार को खबर की वह अपनी बन्दूक लेकर वहाँ पहुँचे तो सर्प गायब हो चुका था और वहाँ बंबीठे की कुछ मिट्टी झर गई थी। जब बंबीठे में भीतर झाककर देखा तो अन्दर से दो चमकते हुए नेत्र दिखाई दिये फिर वहाँ की कुछ मिट्टी हटाई तो अन्दर से एक महानविभूति के दर्शन हुए "श्री महात्माजी बोले हम रामफल यहाँ एकान्त में बैठे है तुम्हे क्या काम हैं मुझे ले चलना है क्या? मालगुजार ने उत्तर दिया दादाजी आप तो स्वयं ब्रह्म हो । चलो मैं आपको अपने गाँव ले चलता हूँ। इतना सुनते ही श्री रामफल दादाजी मालगुजार की पीठ पर बैठ गये और सिरसिरी संदूक गाँव में आ गये । सिरसिरी सन्दूक में आकर रामफल दादा ने अनेक लीलाएँ की। आप भक्तो की विशेष सहायता करने लगे आप तुमडा खाण्डोन-भाडोन आदि ग्रामों में भी कुछ दिन रहे थे ।
मालगुजार के लंगड़े नौकर को ठीक करना-
मालगुजार के यहाँ एक लंगड़ा नौकर था वह चल नहीं सकता था एक दिन नौकर के सामने से एक कुत्ता निकला तो श्री दादाजी महाराज ने नौकर से कहा कि "जा कुत्ते को डण्डा मार" उस लंगडे लडके से चलते तो नही बनता था। लेकिन कोशिश करके एक डण्डा उसने मारा श्री दादाजी कहते रहे "मारते जा" मारते जा इस तरह कुत्ता जिस तेजी से भागता जाता था उसी तेजी से लंगड़ा दौड़ते जाता था इस प्रकार से श्री दादाजी महाराज ने उस लंगड़े लड़के को बिलकुल ठीक कर दिया।
बछिया का अंधत्व दूर करना-
मालगुजार के यहाँ एक अंधी बछिया थी। वह श्रीदादाजी महाराज के साथ खेला करती थी। श्री दादाजी महाराज उससे अत्यन्त प्रेम करते थे। वे जहाँ जाते वह अंधी बछिया उनके पीछे पीछे दौड़ती थी। थोडे दिन बाद ही श्री दादाजी महाराज ने उसकी आंखे खोल दी। जिससे बछिया को सब दिखने लगा।
अनाज की भरी गाड़ियों को रोकना एवं बाद में घाट चढ़वा देना-
एक दिन अनाज से भरी 100 गाड़ियाँ जा रही थी। गाड़ी वालो ने देखा कि श्री दादाजी महाराज रास्ते में लेटे हुए है। शुरू में आदमियों ने उन्हें हटाकर अलग करने की कोशिश की लेकिन नही हटा पाये। फिर पूरे गाड़ी वाले उठाने आने लगे तो इसके पूर्व ही श्री दादाजी महाराज वहाँ खड़े होकर कहने लगे देखता हूँ तुम्हारी गाड़ियाँ कैसे घाट पर चढ़ती है। फिर गाड़ी वालों ने अपनी अपनी गाड़ी हाँकना शुरू किया। अब गाड़ियाँ ऊपर नहीं चढ़ती थी और पीछे की ओर लुढ़क जाती थी। अब इस समय तक मालगुजार भी मौके पर आ गया तथा श्री दादाजी महाराज से अनुनय-विनय करने लगा। जिससे श्री दादाजी महाराज पिघल गये और कहने लगे जाओ रे गाड़ियों को हाँको गाड़ियाँ चढ़ जायेगी। इस प्रकार सब गाड़ियाँ चढ़ गई।
मरे हुए पक्षी को जीवन दान देना
सिरसिरी सन्दूक में एक दिन किसी बालक ने एक पक्षी को पत्थर मारकर घायल कर दिया पक्षी तड़फड़ाकर जमीन पर आ गिरा और गिरते ही पक्षी के प्राण पखेरू उड़ गये। श्री दादाजी महाराज ने यह घटना देखी उनका कोमल हृदय दुखी हो गया और वे पक्षी के पास गये उन्होंने मृत पक्षी को उठा लिया उस पर प्रेम से दादाजी महाराज हाथ फेरने लगे। थोड़ी देर में उस पक्षी में हलचल पैदा होने लगी। श्री दादाजी ने मुक्त आकाश में उस पक्षी को छोड़ दिया पक्षी उड़ गया। इस प्रकार लोगों को निश्चय हो गया कि सचमुच ही श्री दादाजी महाराज कोई सन्त महात्मा नही बल्कि अवतारी पुरुष है।
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