बुद्धेखां कसाई पर श्री दादाजी की कृपा-
उज्जैन निवासी कन्छेदीलाल नाई सन 1925-26 मे साईंखेड़ा मे ही श्री दादाजी महाराज की सेवा मे रहता था,उन्होंने बताया बुध्देखांं कसाई श्री दादाजी का अनन्य भक्त था उसने सुन रखा था श्री दादाजी महाराज पशु पक्षी से भी अनन्य प्रेम रखते है तथा कई बार उन्हें जीवन दान दे चुके है। अतः बुध्देखांं कसाई ने एक मरा हुआ कुत्ता दादाजी के सामने ला रखा। दादाजी उस मरे हुये कुत्ते को देखकर हंसे और उसे कम्बल में लपेट लिया और एक तरफ एक सामान के नीचे दबा दिया। छः सात दिन बाद उस कुत्ते की लाश सड गई और उसमे से दुर्गन्ध आने लगी। दर्शनार्थी आपस मे दुर्गन्ध आने के बारे मे चर्चा करने लगे। तब श्री दादाजी ने उस कम्बल में लिपटी लाश को नीचे रखा और उसे डण्डे से पीटने लगे। महान आश्चर्य हुआ कम्बल में लिपटा हुआ कुत्ता जीवित हो गया और चिल्लाने लगा। दर्शकगण देखकर दंग हो गये। वही कुत्ता श्री दादाजी महाराज के साथ उनके निर्वाण तक खण्डवा में रहा और श्री दादाजी के समाधि लेने के बाद मरा।
एक दिन बुध्दे खा कसाई टोकनी सिर पर रख कर दादाजी महाराज के सामने से निकला, श्री दादाजी महाराज की दृष्टि उस पर पड़ी और उन्होंने अपने पास बुलवाया, दर्शनार्थियो ने देखा की उसकी टोकनी गोश्त से भरी हुई है, और वह उसे बेचने के लिए शहर ले जा रहा है। श्री दादाजी महाराज ने एक डण्डा टोकरी में मारा। देखते ही देखते टोकरी नीचे जमीन पर गिर गई परन्तु टोकनी में से गोश्त की जगह लाल फूल का जमीन पर ढेर लग गया। फिर दादाजी महाराज ने बुध्दे खा को खूब पीटा और बाद में नाई को बुलाकर उसका मुन्डन करवा दिया तथा उसका नाम जटाशंकर रख दिया। जटाशंकर श्री दादाजी महाराज के साथ उज्जैन और खण्डवा में भी रहा। और श्री दादाजी महाराज के समाधि लेने के उपरान्त साँइखेड़ा आ गया और गौ सेवा के कार्य में लग गया।
महात्मा गांधी का भाषण साँईखेडा में सुनाया
श्री दादाजी महाराज सर्वज्ञ महापुरूष थे। संसार में घट रही घटनाओं को ये पल भर में जान लेते थे। सन् 1921 में महात्मा गांधी बम्बई में भाषण दे रहे थे। यहां साँईखेड़ा में श्री दादाजी ने अपने भक्तो को एक खम्बे में कान लगाने को कहा लोगो ने सुना बम्बई में महात्मा गांधी भाषण दे रहे है और ये भक्त लोग उस खबे में साफ-साफ सुन रहे है। बाद में लोगों ने वही समाचार दूसरे और तीसरे दिन अखबार में पढ़ा।
जगन्नाथ पुरी में बर्मा देश के डॉक्टर
जगन्नाथ पुरी की यात्रा में बर्मा देश के डॉक्टर आये हुए थे। श्री दादाजी महाराज ने उन्हें वहाँ जगन्नाथपुरी में दर्शन देकर कहा मोड़ा तू साँईखेडा आ जा। डॉक्टर ने साँईखेड़ा का पता लगाया और श्री दादाजी महाराज के पास साँईखेड़ा आ पहुचे श्री दादाजी महाराज उन्हे देखते ही बोले की कहाँ जाते हो अपना तो यही घर है। डॉक्टर ने उन्हें प्राणाम किया और एक महीने साँईखेड़ा में रहे तत्पश्चात श्री दादाजी महाराज से आज्ञा लेकर बर्मा लौट गये।
मथुरा में दिखे दादाजी महाराज
गाडरवाडा के सेठ घासीरामजी मथुरा गये हुए थे। वहाँ उन्होने एक वृक्ष के नीचे श्री दादाजी महाराज को देखा। किन्तु जल्दी में होने के कारण उनको ध्यान से नही देख सके। लौटकर जब घासीरामजी साँईखेड़ा आये तो उन्हें देखते ही श्री दादाजी महाराज बोले अरे मोड़ा हम भी मथुरा वृन्दावन में थे।
भोपाल निवासी पंडित गंगाप्रसादजी काशी गये थे।
पंडित गंगाप्रसादजी व्यास काशी में जाकर भगवान शंकर की अर्चना करने लगे। प्रतिदिन ध्यान पूजन करने के उपरान्त भी उनको संतोष नही हुआ अचानक एक दिन स्वप्न में व्यास जी को श्री दादाजी महाराज ने दर्शन दिये और कहा कि हम तो सोईखेड़ा में विराजमान है, यहाँ क्यों सिर खपा रहे हो। पंडितजी की तुरन्त नींद खुल गई दूसरे दिन आप सॉईखेड़ा के लिये लौट पड़े तथा सांईखेडा आकर आपने सन्यास ग्रहण कर लिया।
इस प्रकार श्री दादाजी महाराज की लीलाओं की कोई सीमा नहीं हैं। प्रतिदिन ही तरह तरह की लीलाए करके भक्तों को सुख और आनन्द प्रदान किया करते थे
ताजुद्दीन बाबा के शिष्यों का साँईखेड़ा में आना
ताजुद्दीन बाबा औलिया ने अपने शिष्यों को श्री दादाजी महाराज के पास सांईखेडा जाने की आज्ञा दी। वहा से नीलकंठ बाबा और करीम बाबा अपने शिष्यो के साथ नागपुर से श्री दादाजी महाराज की सेवा में उपस्थित हुए। श्री दादाजी महाराज के सामने जबलपुर से आये एक भक्त भजन गा रहे थे "एक नजर में चाहे जिसको रंग दें" भजन सुनते सुनते अचानक नीलकण्ठ बाबा अपने घुटनों के बल श्री दादाजी महाराज के सम्मुख जा पहुचे और दंडवत प्रणाम करके जोर से बोल उठे "जय हो ताजुद्दीन बाबा" श्री दादाजी महाराज हँस पड़े और बोले अरे देख ताजुद्दीन तो इस घड़े में भी है। फिर श्री दादाजी महाराज ने सामने रखी थाली में से एक जलेबी लेकर नीलकण्ठ बाबा के मुँह में रख दी।
बाराबंकी के राजासाहब की व्याधि निवारण
बाराबंकी के राजा पृथ्वीपालसिंह जो शरीर की व्याधियों से अत्यन्त निराश हो चुके थे। अन्त में पूज्य श्री दादाजी धूनी वालो की शरण में साँइखेड़ा पधारे। श्री दादाजी महाराज की दया से उनकी सारी व्याधियाँ दूर हो गई। राजासाहब बडे प्रभावित हुए और राजासाहब सहपरिवार साँईखेडा में इंसपेक्टर गौरीशंकर के मकान में रह कर दादाजी की सेवा करने लगे।
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श्री समाधि दर्शन (श्रीबड़े दादाजी) |
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