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श्री छोटे दादाजी की लीलाएं भाग-३

         एक महिला ने श्री दादाजी महाराज से पूछा क्या आपने ईश्वर को कही देखा हैं ? भगवान कहने लगे श्री दादाजी ईश्वर है और मैने उनका दर्शन उनकी कृपा से पाया है। शूलपाणी भगवान शिव ने भक्त वत्सलता के कारण इस धरा पर अवतार लिया है और अखण्ड अवधूत वृति को धारण करके बैठे है। ब्रह्मण्ड के भीतर और बाहर कोई स्थान ऐसा नहीं है जहां श्री दादाजी महाराज न हो हम उन्हें सर्वत्र देखते है और उनकी कृपा से उन्ही में मिल गये है। हम एक होकर भी दो है और दो होकर भी एक है। इतने में एक भक्त भगवान के चरणों में गिरकर कहने लगा। उसके नेत्रो में प्रेमाश्रु तथा मुख से यह शब्द निकले। हे अन्तर्यामी परम पिता तेरी दया का पार नही. तू ही अवतार है तू ही निराकार है, तू ही सर्वज्ञ है, और तू ही सचिदानन्द है। तेरी महिमा अपरम्पार है। तेरे संसार में आने से ये धरा धन्य हो गई है। इस भक्त से पूछने पर विदित हुआ कि वह इस प्रश्न को मन में लिये हुए दर्शकों के बीच बहुत देर से खडा था।          

बृज में गोपियों के रूप में साथ रहना 
           

               एक बार की बात है एक माता जी ने श्री छोटे दादाजी महाराज के लिये एक कुर्ता अपने हाथ से सील कर श्री दादाजी के लिये खण्डवा लेकर आई। वहां पर दादा जी के अनेक भक्तो  द्वारा अच्छी अच्छी चीजे भेट करता देखकर संकोचवश वह माता जी कुर्ता दादाजी को नहीं दे पाई। दादाजी ने कुछ देर बाद माताजी से कहा। मोडी मेरे लिये कुर्ता बनाकर लाई है। मुझे तेरा बनाया हुआ कुर्ता पहनना है। माताजी बहुत प्रसन्न होकर कुर्ता लाने गई। श्री दादाजी ने एक भक्त से कहा यह मोडी मेरे साथ (बृज में ) गोपियों के रूप में साथ रही थी। मैं इसे जानता हूँ। किन्तु यह मुझे नही जानती। और मााता जी के कुर्ता लाने के बाद दादाजी ने तुरंत धारण कर लिया। 


 उदासियों द्वारा दरबार के विरूध्द षडयंत्र 


         सन् 1930 में श्री बड़े दादाजी द्वारा खण्डवा में समाधि लेने के उपरान्त श्री छोटे दादाजी द्वारा सब कार्य व्यवस्थित रूप से चलता रहा। श्री धूनीवाले आश्रम की अल्प समय में बढ़ते हुए भक्तों की संख्या एवं बढ़ती हुई लोकप्रियता से चिढकर पास ही में स्थित उदासियों के अखाडे वासियों ने पुलिस से मिलकर इस आश्रम को बदनाम करना शुरू कर दिया। सन् 1936 में एक हमला भी आश्रम पर किया। परन्तु इन सब आसुरी प्रवृत्ति का आखिर में 1938 में अदालत के फैसले से श्री दादा दरबार की विजय हुई और आश्रम की कीर्ति में चार चाँद लग गये।

(श्री धूनीवाला आश्रम राइट केस के विषय में हम आपको आगे विस्तार से बताएंगे)


                       

 

भगवान द्वारा लोगों की समस्या को निपटाना


        शाम के समय भगवान खुली जगह में तख्त पर बैठ कर भक्तों की बाते सुनते तथा निराकरण भी करते थे। भक्तों द्वारा सेवा में पेश हुई चीजें कभी भगवान खाते तथा प्रसाद भक्तों में बटवा देते आपके दर्शन के लिये बाराबंकी के राजा तथा दूसरी रियासत के जागीरदार भी आया करते थे। तथा हप्तों रहकर सेवा कार्य किया करते थे। बाराबंकी के महाराज ने आपको एक कार भी भेंट की थी। जिस पर भगवान बैठकर खण्डवा शहर आते जाते थे। बराबंकी के महाराज की प्रार्थना पर भगवान ने बाराबंकी जाकर बाराबंकी के महाराज के प्राण छोड़ते समय उन्हें दर्शन देकर उनको मोक्ष प्रदान किया। 


श्री कोमल भाऊ आखरे का दादाजी के पास आना 


             सन् 1938 की बात है कोमल भाऊ आखरे अपनी माताजी के साथ खण्डवा आये। और श्री छोटे दादाजी के दर्शनों हेतु गये। दादाजी बोले इस बालक का बड़ा भाई तीर्थों का भ्रमण करेगा, छोटा भाई अपने माँ के पास रहेगा और कोमल माऊ को दादाजी ने अपने पास रख लिया उस समय उनकी उम्र 4-5 वर्ष के करीब थी। भक्त जो प्रसाद दादाजी के पास लाते दादाजी उसमें से मेवा मिष्ठान फल कोमल भाऊ को देते थे और वे खाते थे। एक बार इन्दौर की महारानी होल्कर दादाजी के दर्शनों हेतु खण्डवा आई. और इस बालक को देखकर कोमल भाऊ को गोद लेने की इच्छा प्रगट की। दादाजी कोमल भाऊ को बोले तुम्हे अच्छी चीजें खाना अच्छा पहनना पसन्द है। तुम महारानी के साथ इन्दौर जाओ वहाँ तुम्हें सब मिलेगा। और कोमल भाऊ इन्दौर महारानी के साथ में आ गये। किन्तु उन्हें रात में नींद नहीं आती थी वहां मन नहीं लगता था। कोमल भाऊ रातोरात वापिस खण्डवा आ गये। दादाजी ने पूछा तुम बिना बोले आये। कोमल भाऊ बोले हमारा मन नहीं लगा इसलिये आपके पास आ गये। अतः दादाजी समझ गये कि उक्त बालक में कुछ समझ भी है। कुछ समय पश्चात कोमल भाऊ को दादाजी ने कहा बोलों तुम्हें हम क्या देवे कोमल भाऊ ने सेवा माँगी। दादाजी ने समझाया सेवा में कभी खाने को मिलता है कभी भूखा रहना पड़ता है। फिर भी आपने सेवा ही माँगी आपको दादाजी ने सेवा करने का आशीर्वाद दिया। उस समय से कोमल भाऊ दादाजी की सेवा में लगे रहे। 



कोमल भाऊ को छोटे दादाजी ने दर्शन मात्र से जीवन दान दिया 


          कोमल भाऊ बचपन में छोटे दादाजी के पास रहते थे। दादाजी दरबार में लकडी फाडना, टिक्कड बनाना, जो सेवा हो सो करना, भाऊ की ड्यूटी समाधि के पास रात्रि में खड़े रहने की लगी थी। एक दिन 1 बजें रात को टपरी में जाकर सो गये। रात को वहाँ सर्प ने उनके होट पर काट लिया। आप चिल्लाने लगे मुझे साँप ने काट लिया। लोग दौडे आपके होट से खून बह रहा था। शरीर सूज गया था। रात किसी तरह मुश्किल से निकाली। भाऊ को धूनी की भस्मी खिलाई। चरणामृत दिया। अस्पताल जाने की बात उठी कोमल भाऊ ने मना कर दिया और कहा हमें श्री दादाजी महाराज के सामने बैठा दो सब ठीक हो जावेगा। वैसा ही किया गया। थोड़ी देर में सूजन उतर गई सब बात सामान्य हो गई। कोमल भाऊ ने कहा श्री हरिहर भोले ने हमें बचाकर नया जीवन दान दिया है।

             

                 ।। जय श्री दादाजी की ।।


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