श्रीभौरीलाल (छोटे दादाजी) द्वारा गुरु कि तलाश:-
श्री भौरीलाल याने कि श्री छोटे दादाजी महाराज का जन्म राजस्थान के डीडवाना गांव मे हुआ था। वह अपने माता पिता के एकमात्र पुत्र थे। आपके माता पिता का देहांत आपके बचपन में ही हो चुका था।
सन 1916 में भंवरी लाल जी याने की श्री छोटे दादाजी एक दिन गुरु की तलाश में काशी की तरफ निकल पड़े। ट्रेन में उन्हें श्री दादाजी महाराज की महिमा का पता चला तो उन्होंने साईं खेड़ा की ओर जाने का निर्णय लिया। उस समय उनकी उम्र लगभग 18 वर्ष थी।
सिर पर मारवाड़ी पगड़ी,बगलबंदी,खंदजी, कानों में सोने की मुरकिंया, हाथ में लोटा और डोर थी।
भंवरी लाल जी बड़े दादा जी के दरबार में पहुंचे तो वहां भक्तों की भीड़ थी। भंवरी लाल जी को देख श्री दादाजी बोले अपना सामान निशान के पास रख दो ओर श्री दादाजी दलान में गए और वहां बहुत दिनों से रखी एक बाटी उठाकर भंवरी लाल जी को दे दी और कहा यह तुम्हारे घर की रोटी है इसे खा लो। इसके पश्चात भंवरीलाल याने की छोटे दादाजी झंडे के नीचे बैठे गए। इतने में एक ढीमर तरबूज लेकर वहां आया और श्री दादा जी ने उसके कंधे से तरबूज उठाकर फेका तो उसके दो टुकड़े हो गए एक टुकड़ा भंवरी लाल जी की गोद मे गिरा। तो दादाजी बोले इसे खा लो तरबूज खा कर तुम तर जाओगे।
एक दिन की बात है कि भंवरी लाल जी दादा जी के पास बैठे थे। तब श्री दादाजी ने उनके सिर से पगड़ी और बगल बंदी उतार दी और नाई को बुलाकर कहा कि इस मोड़ा को छोल दो।(मुंडन कर दो)
एक बार श्री दादाजी महाराज ने श्री भंवरीलाल जी को अपने डंडे से बहुत पीटा तथा 31 दिनों तक भूखे प्यासे कोठरी में बंद कर दिया। भक्तों ने श्री बड़े दादा जी से विनती की तो श्री बड़े दादा जी महाराज कहने लगे मोड़ा का कायाकल्प हो रहा है। थोड़ी देर बाद ही श्री दादाजी ने एक तसला भर कर कड़ी लाए और ब्रह्मचारी भंवरी लाल जी को पिलाते हुए कहा कि इस कड़ी की तरह कड जाना। पकोड़े के माफिक अटक मत जाना। इसके उपरांत श्री दादाजी महाराज ने श्रीभंवरी लाल जी का नाम हरिहरानंद रख दिया। श्री बड़े दादाजी का शिष्यत्व पाकर हरिहरानंद जी मैं अलौकिक शक्तियां आ गई। धीरे-धीरे भक्तगण व दर्शनार्थियों में वे छोटे दादा जी के रूप में विख्यात हो गए।श्री बड़े दादा जी ने भी अपने शिष्यों में हरिहरानंद जी को प्रथम स्थान में रखकर अपने तेज गुण और तप से विभूषित किया।
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